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पादमुद्रा और प्रासन
४ भद्रासन, कवितासनः
बैठक पर बैठकर दोनों पैर खुले लटकते रखकर बैठने को भद्रासन या ललितासन कहते हैं। यह भी सुखासन का ही एक प्रकार है । इस प्रकार के आसनधारी अनेक देव देवियों की मूर्तियां मिलती हैं ।
५ उत्कटासनः
घुटनों को वस्त्र से बाँध कर, अर्ध बैठी स्थिति को उत्कटासन कहते हैं। दशावतार में नृसिंह के वर्णन में यह आसन बताया गया है । उत्तर भारत में ऐसी कोई मूर्ति नहीं मिलती। दक्षिण में शंकर के तीसरे पुत्र प्राप्पा की मूर्ति का यही श्रासन है । ६ गोपालासनः
कृष्ण की बंसी बजाती खड़ी मूर्ति की मुद्रा को गोपालासन कहते हैं । यह मुद्रा भारत में सभी जगह दिखाई देती है । ७ वीरासनः
एक पैर श्रधा खड़ा रखकर, दूसरा घुटने से मोड़कर अर्ध बैठी स्थिति में बैठने को वीरासन कहते हैं । विष्णु के वाहन गरुड़ का और कई राजाओं का भी यही प्रासन होता है।
८ प्रेतासनः
दोनों पांव मोड़कर, दोनों घुटनों पर बैठने को, कूर्मासन कहते हैं। यह योग का श्रासन है ।
१० सिंहासन:
ये आसन दो प्रकार के कहे गये हैं। बैठक पर चौड़ा पांव रखकर गुह्यभाग दिखाई दे, इस तरह बैठने को, और प्रेत ( मुर्दे ) की तरह सीधे सोकर, दोनों हाथ शरीर से लगाकर सोने को प्रेतासन कहते हैं। यह श्रासन मूर्ति शिल्प के लिये ज्यादा उपयोगी नहीं है। लेकिन उग्र देव या देवी की मूर्ति के नीचे सोते हुए प्रेत का प्रासन इस प्रकार अंकित करने का आदेश है। इसे मूर्ति की पीठ-बैठक कहते हैं । ९ कुर्मासन:
सोती
बुद्ध विष्णु की मूर्ति शेषशायी, जलशाय और बुद्ध निर्वाण मूर्ति का पर्यंकासन होता है।
LAL TASAN ललितासन
कूर्मासन लगाकर दोनों घुटनों पर हाथ की उंगली रखकर, अांखें बंद करके बैठने को सिंहासन कहते हैं। यह भी योग का ही आसन है | कई विद्वान कूर्मासन और मकरासन को भी यही आसन मानते हैं। लेकिन कूर्म और मकर जलचर प्राणी हैं और वे गंगा के वाहन हैं।
जमुना और
११. पचासनः
PARYANKASAN अर्ध पर्यकासन
GOPALASAN PRETASAN प्रेतासन गोपालासन
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BHANGASAN भंगासन ( त्रिभंग )
CCODD
PADMASAN पद्मासन
१९
VIRASAN वीरासन
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UTAKATASAN उत्कटासन
BHADRA PITH भद्रपीठ
LOODE
MAHAMBUJ PITH महाम्बुज पीठ
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PADMA PITH पद्मपीठ