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अङ्ग : पंचम्
पादमुद्रा और श्रासन (Position of Feet)
योग के प्रासन अनेक है। प्रागमों में शिव के ८४ पासन वर्णित हैं। उनमें बत्तीस मुख्य माने जाते हैं। परंतु, उनमें से प्रतिमा विधान के लिये उपयोगी हों, ऐसे बहुत थोड़े हैं। १. योगासन, पद्मासन, स्वस्तिकासन
५. उत्कटासन
९. कूर्मासन २. बुद्ध पद्मासन
६. गोपालासन
१०. सिंहासन ३. अर्ध पर्यकासन-सुखासन
७. वीरासन
११. पर्यंकासन, ४. भद्रासन-ललितासन
८. प्रेतासन ये सभी प्रासन थोड़े-बहुत परिवर्तन के साथ मूर्तिविधान में पाये जाते हैं। इनमें से कई मासनों की मुद्राएं द्रविड प्रदेश के शिल्पों में विशेष पायी जाती है। तो इनमें से कई पासन नृत्यभाव के भी हैं । कूर्मासन और सिंहासन मूर्ति विधान के अनुरूप मुद्राएं नहीं हैं । वे योग की मुद्राएं हैं।
___ 'अहिर्बुदन्य संहिता' में दस प्रासन वर्णित है। 'सुप्रभेदागम' में प्रासनों के पांच भेद कहे गये हैं-जो उपरोक्त आसनों में समाविष्ट है। महाराजा भोजदेव ने 'समरांगण सूत्रधार' में पादमुद्रामों के ६ प्रकार कहे हैं।
शरीर मुद्रा, पाद मुद्रा और प्रासन, ये तीनों विषय भिन्न हैं। उनके स्पष्टीकरण के अभाव में कई प्रकार के मिश्रण होते रहते हैं। इसलिये यहां उनका थक् स्पष्टीकरण करने का प्रयास किया गया है। 'पासन' का सामान्य अर्थ बैठना-बैठक होता है। उसके ऊपर से आसनों को शरीर के अवयवों की क्रिया कही गई है। आसनों के लक्षण १ योगासन, पद्मासन, स्वस्तिकासनः
सामान्य पलथी लगाकर दोनों हाथ गोद में रखकर बैठना, इसे योगासन या पद्मासन कहते हैं। ध्यानस्थ शिव, विष्णु, योग दक्षिणामूर्ति और ऋषि-मुनियों के प्रासनों की यह आसन-मुद्रा होती है। 'रुद्रयामलतंत्र' और 'वशिष्ट-योगसार' में इसे स्वस्तिकासन कहते हैं। २ बद्ध पद्मासनः
दोनों पैरों को बाँधकर पलथी मारने से जब दोनों पैरों के पंजे खुले दिखाई दें, ऐसे आसन को बद्ध पद्मासन कहते हैं।
गोद में दोनों हाथ एक के ऊपर दूसरा रखकर लगाया जाने वाला आसन, बद्ध पद्मासन से विशेष भिन्न नहीं है। प्रासनस्थ जैन, बौद्ध प्रतिमाएं इस प्रकार की होती हैं। ३ अर्ध पर्यकासन, सुखासनः
बैठक पर एक पैर मोड़कर, और दूसरे को नीचे लटकता रखकर बैठने को अर्धपर्यकासन कहते हैं । उमा-महेश, लक्ष्मीनारायण और ब्रह्मा-सावित्री की युग्म मूर्तियां और कई देवियों की मूर्तियों की प्रासनमुद्रा इस इस प्रकार की होती है। इसे सुखासन भी कहते हैं।
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