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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्त मुद्रायें करपुटमुद्रा सिंहVIY गजहम्त कटघवलंबित KARPUTMUDRA GAJHASTA SINHA KARNA भूमिस्पर्श KATYAVALAMBIT BHUMISPARSH प्रतिमा के लक्षण में मुद्रायें बहुत अल्प है । बौद्धों में मुद्राओं का प्रयोग विशेष मात्रा में पाया जाता है। जैसा कि हम देख चुके हैं, भारत के मूर्ति-विधान में वरद, अभय, तर्जनी और ज्ञानमुद्राओं का ही विशेष प्रयोग हुआ है। हाथ और उंगली की स्थिति दर्शाती हुई शैली में उत्तर भारत की मूर्तियों से दक्षिण भारत की मूर्तियां अलग दिखती है। हाथ की उंगलियों की मुद्रामों में, भारतीय शिल्पियों ने जैसे प्राण फूंक दिये है, और उन्होंने पाषाण जैसे मूक माध्यम में मन की प्रांतरिक वृत्तियों का प्रकटीकरण किया है। "विष्णु धर्मोत्तर" के अनुसार नृत्यकला का प्राण भावाभिव्यक्ति है, और भावाभिव्यक्ति मुद्राओं द्वारा प्रदर्शित होती है। वरदमुद्रा, अभयमुद्रा, ज्ञानमुद्रा, तर्जनीमुद्रा, सिंहकर्णमुद्रा, पताका-विपताका आदि एक हाथ की मुद्रायें हैं और दो हाथ से होनेवाली मुद्रायें भी वर्णित हैं। दरअसल ये सभी मुद्रायें मूर्तिशास्त्र के लिये उपयोगी नहीं है । उत्तर भारत के मूर्तिशास्रों में सिर्फ तीन मुद्राओं का प्रयोग होता है । वरद, अभय और तर्जनी। जबकि द्रविड़ शिल्प में इन तीन के सिवा कटक, कट्यवलंबित, सूचि, व्याख्यान, ज्ञान, और गजदंड मुद्रा भी पाती है । अभय ABHAY पर्द ग्यानमुद्रा GNANMUDRA सुचि कटक KATAK VARD SUCHI तजिनी TARJINI ग्यानमुद्रा GNANMUDRA अंजली ANJALI विस्मय VISMAY For Private And Personal Use Only
SR No.020123
Book TitleBharatiya Shilpsamhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherSomaiya Publications
Publication Year1975
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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