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Екс
KATAK कटक
२. गजहस्त या दंडहस्त मुद्रा :
३. सिंहका मुद्रा
VARD बर्द
GAJADAND नजदंड
B
GNAN MUDRA ग्यानमुद्रा
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हाथी की सूंड या दंड की तरह हाथ रखने की मुद्रा 1
(अ) भूमिस्पर्श मुद्रा
हाथ नीचे रखकर सिंह के दो कान जैसी मुद्रा ।
हस्तमुद्राओं के लक्षण : १. काकांची मुद्रा
कमर पर हाथ रखा गया हो, ऐसी मुद्रा । उदाहरणार्थ विठोबा की मूर्ति ।
TARJANI तर्जनी
श्राश्वर्यं प्रकट करती मुद्रा को विस्मय मुद्रा कहते हैं ।
SUCHI
सुचि
ABHAY अभय
WYAKHYAN MUDRA
व्याख्यानमुद्रा
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४. करसंपुट मुद्रा
दो हाथ के पंजे संपुट की तरह जोड़ने की मुद्रा को करसंपुट मुद्रा कहते हैं। दो अधिक मुद्रायें इस प्रकार हैं :
(अ) विस्मय मुद्रा:
भारतीय शिल्पसंहिता
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KATYAVALAMBI MUDRA कटयाबलंबीत मुद्रा
पद्मासनयुक्त मूर्ति के दाहिने हाथ की उंगली से भूमि स्पर्श करने का भाव दिखाती मुद्रा को भूमिस्पर्श मुद्रा कहते हैं। ध्यानी, योगी इस मुद्रा में बैठते हैं । विशेषतः बौद्धमूर्तियां इस मुद्रा में पायी जाती हैं । बुद्ध की आसनस्थ मूर्ति की यही मुद्रा है।
अभय, वरद, तर्जनी, ज्ञानमुद्रा और भूमिस्पर्श मुद्रायें उत्तर भारत की प्रतिमानों में विशेष मात्रा में दृष्टिगोचर होती हैं। अन्य मुद्रा द्रविड शिल्प में विशेष पायी जाती हैं। पताका और विपताका शिवनटराज के रूप में तांडव और संहार तांडव की मुद्रायें वर्णित हैं। बौद्ध शास्त्र में ज्ञान - व्याख्यान को संदर्शन मुद्रा कहा गया है। बौद्धों और जैनों की आसनस्थ मूर्ति की गोद में एक हथेली पर दूसरी हथेली रखी हुई होती है; इसे योगमुद्रा कहते हैं। विष्णु और शिव की मुद्रा को भी योग मुद्रा कहा गया है। 'अपराजित' कार ने स्वच्छंद भैरव की महाकाय इक्कीस ताल की मूर्ति के दो हाथ की योनि मुद्रा कही है।
हस्त पाद और मुखादि की स्थिति, गति और प्राकृति से नृत्य के भाव अभिव्यक्त होते हैं। शिव की योगमूर्ति के अलावा ब्राह्मण