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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अङ्ग : षष्ठम् पीठिका (Pedestal) द्रविड ग्रंथों में उत्तर भारत के शिल्प ग्रंथों से काफी अधिक मात्रा में पीठिका, बैठक और आसन विषयक वर्णन मिलता है। द्रविड ग्रंथों में नौ प्रकार की पीठिकाएं वर्णित हैं। जैसे १. भद्रपीठ २. पद्म पीठ ३. महाम्बुज पीठ ४. वजपीठ ५. श्रीधर ६. पीठ पद्म ७. महावज्र ८. सौम्य ९. श्रीकाम्य इसमें भद्र पीठ, पद्म पीठ और महाम्बुज पीठ (देखिये चित्र पृष्ठ : १९) द्रविड और उत्तरीय प्रदेश की मूर्ति में देखी जाती है। कई लोग पीठ या बैठक की गणना शरीर-आसन में करते हैं। लेकिन शरीर मुद्रा से यह (आसन-पीठ-बैठक) भिन्न ही है। 'समरांगण सूत्रधार' में मुद्रामों के अध्याय में तीन प्रकार वर्णित है। शरीर मुद्रा, पाद मुद्रा और हस्त मुद्रा, इस तरह तीनों का भिन्न-भिन्न वर्णन है। कई लोग वाहन को ही बैठक मान लेते हैं। उदाहरणार्थ शेषशायी विष्णु, कालिय मर्दन करते कृष्ण, मृतक पर नृत्य करते नटराज, या वामन अवतार में बलि को पैर के नीचे कुचलते हुए भगवान विष्णु, ये सब प्रासंगिक वाहन, प्रासन, या मुद्रायें हैं। लेकिन इन्हें पीठिका नहीं कहा जा सकता है। पीठिका का मतलब है, जिसके ऊपर हरदम बैठा जा सके, ऐसा आसन । उदाहरणार्थ सिंहासन पौराणिक काल में देव, राजा, महाराजा आदि के निश्चित आसन थे। गणेश हमेशा सिंहासन के ऊपर ही बैठते हैं। जब कि हनुमान के लिए ऐसा कोई निश्चित आसन नहीं है। वे राम के चरण के पास सेवक की मुद्रा में बैठते हैं । और जब खड़ी मुद्रा में होते हैं, तब एक हाथ में गदा और दूसरे में पर्वत धारण किये होते हैं। या प्रणाम मुद्रा में होते हैं। इसी तरह बालकृष्ण का भी कोई आसन नहीं है। लेकिन राजवी कृष्ण सिंहासन पर बैठते थे। For Private And Personal Use Only
SR No.020123
Book TitleBharatiya Shilpsamhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherSomaiya Publications
Publication Year1975
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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