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भारतीय शिल्पसंहिता
(१५) बीज गणपति का दूसरा रूप इस प्रकार है : सिंदूर वर्ण और तीन नेत्र हैं । चार भुजा में दंड, पाश, अंकुश और बीजोरु होते हैं।
(१६) लक्ष्मी गणेश : कमल से विभूषित, और सर्व आभूषण से शोभित गणेश के अगल-बगल उनकी दो पलियाँ शुद्धि-बुद्धि या तुष्टि-पुष्टि होती हैं। इनके तीन नेत्र और चार भुजायें होती हैं। उनमें दांत, अभय, चक्र और वरद होते हैं । सूंड में मणियुक्त कुंभ होता है । मूषक का वाहन है । ये समुद्रपुत्र लक्ष्मी-गणेश सुवर्णमय होते हैं।
कार्तिकेय कार्तिकेय के अनेक नाम हैं : स्कंद, सुब्रह्मण्य, सोमस्कंदपादि। वैदिक वाङमय में इन नामों का उल्लेख नहीं है सिर्फ कुमार, कार्तिकेय, स्कंद ऐसे नाम मिलते हैं। पुराणों में इनकी शक्ति विषयक कथायें मिलती हैं। वे शिव-पार्वति के पुत्र माने जाते हैं। देवताओं के सेनापति होनेसे उनका एक नाम 'सेनानी' भी है। उन्होंने तारकासुर और कोंच को मारा था। उनके १७ नाम और स्वरूप 'शैवागम सेखर' ग्रंथ में दिये हैं। मुख छः होनेसे वे षड्मुखम् कहलाये।
कार्तिकेय : सूर्य और कमल-जैसा पीत वर्ण, तरुणावस्था,मयूर का वाहन । शहर और खेत के दरवाजे पर बारह भुजा के कातिकेय को स्थापित करना चाहिए। खर्वत (गाँव) में चार भुजा की मूर्ति की तथा ग्राम या वन में दो भुजा की मूर्ति की स्थापना करनी चाहिए।
वावशमुजा कातिकेय : बारह भुजावाले कार्तिकेय के दायें हाथों में शक्ति,पाश, खड्ग, बाण, त्रिशूल, वरद या अभय मुद्रा होती है। बायें हाथों में वे धनुष, पताका, मुष्टि, तर्जनी, ढाल और कुक्कुट धारण किये होते हैं। छः मुख और मयूर का वाहन होता है।
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कार्तिकेय-स्कंद सुब्रह्मण्य
चतुर्मुख कातिकेय : बायें हाथों में शक्ति और पाश, दायें हाथों में तलवार, वरद या अभय मुद्रा होती है। छः मुख और मयूर का वाहन होता है।
द्विभुज कार्तिकेय : बायें हाथ में शक्ति और दूसरे हाथ में कुक्कुट होता है। वाहन मयूर का और छ: मुख होते हैं।
अपराजित सूत्रम्, मत्स्यपुराण, रूपमंडन, देवतामूर्ति प्रकरण, काश्यप शिल्प, अग्निपुराण, आदि ग्रंथों में थोड़े बहुत परिवर्तन के साथ भिन्न-भिन्न स्वरूप दिये गये हैं।
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