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प्रकीर्णक देव
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हनुमान-मारुती श्रीरामचंद्र के परिवार में हनुमान का स्थान बड़ा महत्त्वपूर्ण है। रामचंद्र के परम भक्त होने से उनकी स्थापना राममंदिर में अवश्य होती है। वे वायु-मरुत के पुत्र होने से मारुती के नाम से प्रसिद्ध हैं। वे प्रतापी, बनदेही पौर बलवान हैं । वे रुद्र के अंश माने जाते हैं।
उनकी दो प्रकार की मूर्तियाँ होती हैं। एक नरमुख की और दूसरी वानर मुख की। बानर मुख की मूर्ति के चारों ओर वानर सैन्य भी उकेरा जाता है।
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सुग्रीव हनुमन्त-मारुती
जांबुवंत (१) हनुमन्त स्वरूप हनुमान की मूर्ति के दो हाथ हैं। एक हाथ छाती पर रहता है या उसमें गदा रहती है। दूसरे हाथ में से पर्वत धारण किया होता है। एक पैर सीधा और दूसरे के नीचे दैत्य या पनौती होती है। कमर पर वस्त्र बंधा रहता है। रामचंद्र के सामने वे दास-हनुमान की मुद्रा में होते हैं-दोनों हाथ जुड़े हुए-प्रणाम मुद्रा में होते हैं।
(२) हनुमन्त : (ब्रह्माण्ड पुराण) : सुग्रीवादि-समग्र वानर जाति सहित रक्तरंगी लोचनवाले हनुमन्त-पीले वस्त्र और अलंकार सहित बायीं भुजा में गदा और पाश तथा दायीं भुजा में कमंडल तथा ऊपरी हाथ में दंड होता है। वे पीले केश और सुवर्ण कुंडल से शोभित
(३) पंचवक्रा हनुमन्त (पांच मुख के हनुमान-सुदर्शन संहिता): पाँच मुख के हनुमन्त के तीन नेत्र और दस भुजायें हैं। वे सर्व कामना, अर्थ और सिद्धि को देनेवाले हैं। पूर्व मुख सूर्य-जैसा तेजस्वी है, लेकिन उन्नत भृकुटीवाला उसका स्वरूप भयंकर हैं। दक्षिण मुख नरसिंह-जैसा उग्र, अद्भुत और तेजस्वी है। पश्चिम मुख गरुड़-जैसा है। टेढ़े मुख बाला यह मुख महाबलवान है, जो नाग के विष को हरता है। उत्तरमुख वराह-जैसा श्याम दीप्त रूप है। वह जर रोग का नाश करता है, ऐसा माना जाता है । पाँचवा मुख अश्व का है, वह घोर दानव का नाश करता है।
रुद्ररूप हनुमन्त दया के सागर हैं । वे पीतांबर-मुकुट से शोभित हैं । वे पीली आँखोंवाले हैं। उनकी दस भुजा में खड्ग, त्रिशूल, खटवांग, पाश, अंकुश, पर्वत, मुष्टि, गदा, कमंडल और दसवीं भुजा ज्ञानमुद्रा की है। वे पनोती पर खड़े हैं। सर्व प्राभूषणों से शोभित दिव्यमाला और दिव्यगंधकों का लेगन किये हुए ये पंचमुखी हनुमान बड़े ही प्रभावशाली लगते हैं।
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