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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५२ भारतीय शिल्पसंहिता संबंध सूचक है। भारत में सूर्य पूजा का प्राबल्य बढ़ने का एक कारण है। मुख्य पंचायत देवों में सूर्य का स्थान है। मध्ययुग तक सूर्यपूजा का और उसके मंदिरों का बहुत महत्त्व था। बाद में सूर्य का महत्त्व अन्य ग्रहों जैसा गौण हो गया और उसके स्वतंत्रमंदिर भी कम बनने लगे। मोढ़ेरा का सूर्यमंदिर अत्यंत प्राचीन है। वैसे ही ग्रीस में भी सूर्यमंदिर बने थे। लेकिन अब सूर्यमंदिर नहीं बनते। अफगानिस्तान में भी सूर्य का स्वरूप हमारी मान्यता से ही मिलता-जुलता है। 'देवता मूर्ति प्रकरण' में सूर्य के बारह स्वरूप, चार भुजाओं वाले कहे हैं। ऊपर के दोनों हाथों में कलश, दूसरे दो हाथों में माला, शंख, चक्र, वरद, पाश, त्रिशूल, गदा, सखा आदि में से कोई भी दो आयुध रहते हैं। * समा SURYADEV सूर्यदेव 'दीपार्णव' ग्रंथ में सूर्य के तेरह नाम और स्वरूप कहे हैं । और उन्ही सभी को दो हाथ वाले कहे हैं। कमल, शंख, वज्र, दंड, फल और चक्र उसके आयुध हैं। सूर्य की मूर्ति समपाद मुद्रा में खड़ी होती है । मूर्ति के दोनों हाथों में दंडवाले कमल होते हैं । उसकी छाती योद्धा जैसी होती है। और पैर में उपान ( होलबुट ) होते ही हैं । बगैर उपान की मूर्तियां बहुत अल्प मात्रा में देखी जाती हैं । सूर्य का वर्ण रक्त-लाल है। राज्ञी, छाया, निभुक्षा और सुवर्णसा नामक सूर्य की चार पत्नियां हैं । उसमें राज्ञी को रनादेवी भी कहते हैं। पुत्र प्राप्ति की इच्छावाली स्त्रियां सीमंत प्रसंग के दिनों में इस रांदल माता का पूजन करती हैं। विश्वकर्मा की इस पुत्री का विवाह सूर्य के साथ हुमा माना जाता है। सूर्य प्रतिमा के परिकर में रत्ना और छाया की स्त्री मूर्तियां, दंडी और पिंगल नामक प्रतिहारों के साथ प्रांकी जाती हैं । सूर्य का वाह्न सप्ताश्व रथ होता है। उसका सारथी अरुण है। 'पागम ग्रंथों में सूर्य के अलग ही नाम बताये हैं। सूर्यपूजा मध्य एशिया में से शक जाति के साथ भारत में पायी होगी, ऐसा अनुमान उसके वेश परिधान से पुरातत्वज्ञ करते हैं। वेदों में भी सूर्य की स्तुति होने के कारण, वह आर्यावर्त के पाठ देवताओं में से एक महत्त्वपूर्ण देव माना जाता हैं। पंच देवों में भी सूर्य का स्थान है (ब्रह्मा, विष्णु, सूर्य, महेश, गणेश): कदाचित् सूर्यपूजा पिछले काल में गौण बनने से शक जाति उसे प्रधान देव मानकर विशेषकर पूजन करने लगी हो। २. चंद्र (MOON): नक्षत्र मंडल का अधिष्ठाता चंद्र है। वेद, ब्राह्मण ग्रंथों में चंद्र का शरीर अमृतमय कहा है। अत्रि और अनसूया से उसकी उत्पत्ति For Private And Personal Use Only
SR No.020123
Book TitleBharatiya Shilpsamhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherSomaiya Publications
Publication Year1975
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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