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अङ्ग : एकविंशतिम्
ग्रह स्वरूप
वैदिक ज्योतिष में २७ नक्षत्र कहे गये है। उससे १२ राशि बनी और उनके ७ राशिपति है। अपने स्थान पर होने से उन्हें ग्रह कहे जाते हैं। राहु और केतु किसी भी राशि के स्वामी न होते हुए भी उनको ग्रहमंडल में गिना जाता है। इस तरह ग्रहों की संख्या (७+२)
-९की हुई। सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु । मानव जीवन के साथ नौ ग्रह, अपनी गति और स्थान के कारण संबंध कर्ता होने से, ज्योतिषशास्र में उन्हें महत्त्व का स्थान प्राप्त है। भावी प्रसंगों की प्रागाही ज्योतिषी गिनती से करते हैं। देवों की तरह उनका भी व्रत-पूजन किया जाता है। वेदों में भी ग्रहों के उल्लेख हैं।
ग्रहों में सूर्य का स्थान प्रथम और सर्वोच्च है। ग्रहविषयक साहित्य उत्तर भारत के तथा द्रविड़ प्रदेशों के ग्रंथों में बहुत पाया जाता है। उनमें ग्रहों का वर्णन करते हुए उन्हें दो या चार हाथवाले बताया गया है। कई ग्रहों के आयुध और स्वरूप में भी भिन्नता है, ऐसा उनमें वर्णन है। अग्नि, मत्स्य, पद्म, विष्णु धर्मोत्तर, बृहद्संहिता, अंशुमदभेदागम, पूर्वकारणागम, श्री तत्त्वनिधि, देवतामूर्ति प्रकरण, दीपार्णव, अभिलाषितार्थ चितामणि और शिल्परत्नम् आदि ग्रंथों में ग्रहों के बारे में पालोचना है। उसमें कई जगह एक-वाक्यता नहीं है, भिन्नता भी है। कमी अधिक भुजा और प्रायुध वाला कहा है।
प्रत्येक ग्रह के माथे पर किरीट-कुंडल होना ही चाहिए। अन्य अलंकार भी होने चाहिए ऐसा निर्देश है। नवग्रहों के स्वरूप प्रासाद के वितान (गुंबद) में, कक्षासन में, जंघा या स्तंभ के पाट में उत्कीर्ण होते हैं।
जैनों के श्वेतांबर और दिगंबर संप्रदायों में ग्रहों को गौण माना गया है। फिर भी दोनों संप्रदायों की विधिविधानपूजा में ग्रहों को समाविष्ट तो किया ही गया है। जैन प्रतिमा के परिकर की गादी के नीचे के अधोभाग में नव ग्रहों के छोटे स्वरूप उत्कीर्ण किये जाते हैं। जैन ग्रंथों में ग्रहों के आयुध, भुजा और वाहन एक-से नहीं है। नौवींसदी के 'निर्वाणकलिता' में ग्रहों और दिक्पालों को दो-दो भुजावाले बताया गया है। पूजन-विधि के मंत्रों में एकएक आयुध का उच्चार किया जाता है। ग्रहों के मूर्तिस्वरूप में प्रादेशिक भिन्नता भी देखी जाती है।
सूर्य के सिवा अन्य ग्रहों के स्वतंत्र मंदिर और प्रमुख पूज्य मूर्तियां नहीं मिलती है। १२ या १३वीं शताब्दी में मंदिरों के द्वार पर उत्तरंग के पट्ट में नवग्रह सैकड़ों की संख्या में पंक्तिबद्ध रूप में उत्कीर्ण देखने को मिलते हैं। नवग्रहों के वर्णन १. सूर्य (SUN):
वेदों में स्वतंत्र सूक्तों द्वारा आदित्य की बहुत स्तुति की गयी है। ऋग्वेद के एक सूक्त में सूर्य के छह नाम, तथा अथर्ववेद में अदिति के पाठ पुत्रों के नाम, सूर्य के कहे हैं। 'तैतिरीय ब्राह्मण' में भी पाठ नाम कहे हैं। 'शतपथ-ब्राह्मण' में बारह कहे हैं, उन्हें १२ महीने के साथ गिनाये हैं। इन सब ग्रंथों में सूर्य का 'अरीयमन' नाम दिया है। उसका अर्थ है 'मित्र' । पारसी धर्मग्रंथ 'अवेस्ता' में भी यही नाम है। 'विवस्त्रत' सूर्य का स्वरूप ईरानी देवता में है। ऋग्वेद में सूर्य को 'पूशन' कहते हैं। शौरपक्ष में ईरानी प्रजा का
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