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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विपाल १४५ ऐसी विचित्र मूर्ति दक्षिण भारत के चिदम्बरम में और त्रावणकोर के कंडीपुर के शिव मंदिर में हैं। इसके अलावा दो मुख, तीन पैर और चार भुजाओं के स्वरूपवाली मूर्ति खजुराहो और मोढेरा ( गुजरात ) के सूर्यमंदिर के अग्निकोण में मौजूद है। ऐसी विचित्र मूर्तियां बहुत कम दिखाई देती हैं। इस मूर्ति का वर्ण रक्त है, मेष का वाहन है और मूर्ति के पैर के पास अग्नि ज्वाला युक्त कुंड है। मूर्ति के दोनों पोर स्वधा और स्वाहा नामक उसकी दो पत्नियां खड़ी हुई होती हैं । अग्नि का मुख्य प्रायुध सूचि शाखा है। उसके चार हाथों में कई जगह वरद, शक्ति-कमल और कमंडल दिए हुए होते हैं । शक्ति की जगह कहीं सूचि भी होती है। इस विचित्र स्वरूप को अग्नि या यज्ञपुरुष भी कहा जाता है। ३. यम: यह दक्षिण दिशा का अधिपति और मृतात्मा का मुख्य देव है। इसे याम्या भी कहते है। इसके पिता विवस्वान और पत्नी धूमौर्णी है। शरीर श्याम वर्ण का है, भैसे का वाहन और मुख्य प्रायुध दंड है। मनुष्य के कर्मों की नोंध करते दो हाथों में लेखनी और पुस्तक VE Pramayan पूर्वे-इन्द्र दक्षिणे-यम है। और ऊपरी हाथ में मनुष्य को मृत्यु-काल की याद दिलाता कुर्कुट भी है। पाश और दंड का आयुध भी शिला-शास्त्रों में वर्णित है। उड़िया के भुवनेश्वर में यम के दो हाथों में से एक दंड दिया गया है और भैसे का वाहन कहा है। उसे धर्मराज या पितृराज भी कहते हैं। उसके पैर के पास मृत्यु प्रौर विजयगुप्त की छोटी खड़ी मूर्तियां होती है। श्राद्ध में यम का पूजन होता है। ४. नैऋती : नैऋत्य कोण के इस दिक्पाल का स्वरूप राक्षस जैसा क्रूर माना गया है। भूत, पिशाच, राक्षसों का अधिपति होने के कारण उसे राक्षसेन्द्र भी कहते है। उसे भैरव और क्षेत्रपाल के नाम से भी पहचाना जाता है। पुराणों में उसे एकादश रुद्र माना है। उसका वर्ण हरित है। दूसरे कई लोग मानते हैं कि उसका श्याम धूम्ररंग है। उसके चार हाथ हैं। उसके हाथों में कनिका, खड्ग, ढाल और (नीचे के हाथ में ) दुश्मन का मस्तक होता है। शिल्पग्रंथ में उसका वाहन श्वान माना जाता है। कई और मतों से उसका वाहन सिंह, शब, खर, या नर भी माना जाता है। 'अंशु भेदागम' में उसे दाढ़ीवाला माना गया है। और उसके आसपास सात रम्य अप्सराएं दिखाई हैं । नैऋती के लिये ऊर्ध्वकेशी मुकुट करने का विधान है। For Private And Personal Use Only
SR No.020123
Book TitleBharatiya Shilpsamhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherSomaiya Publications
Publication Year1975
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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