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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १३० मयूर या हंस इनका वाहन होता है। ये कमल पर बैठी हैं। www.kobatirth.org (1) -fr: विश्वकर्म शास्त्र में इन्हें चार भुजा युक्त तथा सिंह वाहिनी कहा है। खड्ग, ढाल, दर्पण और वरदमुद्रा में शोभित तीन नेत्र वाली ये देवी है। वेद में भी अंबा-अंबिका के नाम मिलते हैं। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्य मत से ये तीन नेत्र सहित हँसते मुखवाली, और रक्त वर्ण की वर्णित की गई है। छः भुजाओं में बीजोरु, पाश, अंकुश, बाण, धनुष और खप्पर होते हैं। कई जगह इनके चार हाथ भी कहे हैं, उसके अनुसार खड्ग, विशूल, गदा और वरद हैं । गोद में बालक भी होता है। (१४) भुवनेश्वरी देवी प्रभात के सूर्य से तीन नेता मुख और कमल पर बैठी हुई होती है। उनकी चार भुजाओं में वरद पाश और अभय हैं। (१५) पूर्णा भारतीय शिल्पसंहिता सूर्य-चंद्र के जैसा वर्ण, तेजस्वी अन्नपूर्णा के चार हाथों में माला, पुस्तक, पाश और पात्र होते हैं । यह काशीक्षेत्र की अधीश्वरी मानी जाती है। ( १७ ) गंगा (अग्नि) : (१६) गायत्री प्रात: सूर्यमंडल के बीच तीन मुख, रक्त वर्ण, दो भुजा, माला, कमंडल और हंस का वाहन ऐसी ब्रह्माणी प्रातः गायत्री कुमारी बेद की मानी जाती है। , मध्याह्न : कृष्ण वर्ण और तीन नेत्र वाली इन सावित्रीदेवी के चार हाथ हैं। उनमें शंख, चक्र, गदा और पद्म होता है । ये गरुड़ पर बैठी हुई हैं -- विष्णु यजुर्वेद । सायं :- शुक्ल वर्ण की इस सरस्वती की चार भुजायें हैं । त्रिशूल, डमरु, पाश और पात्र धारण करके ये नंदी पर बैठी हुई वृद्धा रुद्राणी है । इनके दो हाथों में कुंभ और कमल है। ये श्वेत वर्ण की है और मगर इनका वाह्न होता है। (२०) तुलसीदेवी : . (१८) यमुना : कूर्म के वाहन वाली श्याम वर्ण की यमुना के दो हाथों में कुंभ और वरदमुद्रा है। प्राचीन स्थापत्यों के देवमंदिरों की द्वारशाखा में, दक्षिण शाखा में गंगा और बाम शाखा में यमुना की स्थापना होता थी । (१९) शीतला : 'स्कंध पुराण' में इनका वर्णन है। ये शीतला के रोग को मिटाती है, ऐसा माना जाता है। नग्नस्वरूप में गर्दभ पर बैठी हुई इनके हाथ में झाडू और कलश होता है। सर पर सूप धारण किया होता है। For Private And Personal Use Only श्याम वर्ण, कमल-जैसे लोचन, प्रसन्न मुख और चार भुजायें हैं। कमल, सफेद कमल, वरद और अभय मुद्रा होती है । (२१) दुर्गा : दुर्गा के भिन्न-भिन्न स्वरूप कहे गये हैं। चतुर्भुज, अष्टभुज, जया दुर्गा, मूलिनी दुर्गा, मोहबाहिनी दुर्गा, कृष्णदुर्गा विद्यवासिनी दुर्गा, दशभुज दुर्गा, प्रतिदुर्गा, विश्वदुर्गा, सिद्धदुर्गा, अग्नि दुर्गा, जया-विजया दुर्गा, योमवती दुर्गा तथा विजिता दुर्गा । दस महाविद्या देवी के १० स्वरूप, षोडश मातृकाओं के १६, पीठ शक्ति के नौ स्वरूप कहे हैं । ६४ योगिनियों के विविध स्वरूप सर्व दुर्गा या महाकाली की सेविकाओं के रूप में माने जाते हैं। जैसे शिव के भैरव, वैसे देवी की योगिनियाँ उसकी शक्ति मानी जाती हैं। 'रुद्रयामल' ग्रंथ में उनके नाम और स्वरूप दिये हैं। 'अग्निपुराण' में सिर्फ ६४ नाम ही दिये गये हैं।
SR No.020123
Book TitleBharatiya Shilpsamhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherSomaiya Publications
Publication Year1975
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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