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देवी-शक्ति-स्वरूप
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'मत्स्य पुराण' के अनुसार वह लंबी जिव्हा, ऊर्ध्व केश और हलयुक्त होती है। गीध और कोवे के वाहनवाली योगेश्वरी दस भुजाओंवाली, श्याम वर्ण की और हड्डियों के शरीरवाली होती है। (६) महिषासुर मदिनी : कात्यायिनी :
दस भुजा, तीन नेत्र और त्रिभंग मुद्रावाली होती है। अलसी के फूल-जैसा वर्ण और सर्व प्राभूषणों से शोभित, यौवनयुक्त, बड़े स्तनवाली सिंह के वाहन पर बैठी है। दायें हाथों में त्रिशूल, खड्ग, बाण और शक्ति होती है। बायें हाथों में ढाल, धनुष, पाश और अंकुश रहता है। घंटा या परशु भी कभी-कभी होता है। नीचे के हाथ में केश-रहीत दैत्य का माथा भी रहता हैं।
उसके नीचे महिष दैत्य दांत पीसता हुआ लेटा है। उसका शरीर रक्त से लाल हुआ रहता है। उसके हाथ में खड्ग है। वह नाग से जकड़ा हुआ है। उसकी छाती में देवी का शस्त्र है। देवी का दायाँ पैर अपने वाहन सिंह पर और बायें पैर का अंगूठा महिषदैत्य पर है। यह पार्वती का ही रूप माना गया है। वेद वाङमय में इसका उल्लेख नहीं है। पंचायतन मंदिर में चारों दिशा में शंकर, गणेश, सूर्य और विष्णु को देवी कालिका होती है। भूरे और बदामी मूर्ति के चार हाथ हैं
और प्रत्यालिंढ्य मुद्रा है। (७) लक्ष्मी
सर्व आभूषणों से शोभित, अष्टदल कमल पर बैठी हुई, उनके ऊपरी हाथों में कमल और नीचे के दायें हाथमें अमृत कुंभ तथा बायें हाथ में बीजोरु धारण किये होते हैं। दो और पाठ हाथ के लक्ष्मी के स्वरूप कई ग्रंथों में वर्णित हैं। लक्ष्मी के दोनों ओर परिचारिकायें पवन डुलाती होती हैं। देवी के मस्तक पर दोनों ओर कलस से अभिषेक करते हुए हाथी हैं।
'अग्निपुराण' में उनके पाठ हाथ कहे हैं । धनुष, गदा, बाण, कमल, चक्र, शंख, मुशल, अंकुश आदि उनके प्रायुध हैं। (८) महालक्ष्मी
लक्ष्मी-जैसा ही आभूषणों से शोभित इनका स्वरूप है। बायें नीचे हाथ में पान और ऊपर के हाथ में गदा होती है। दायें ऊपरी हाथों में ढाल और नीचे श्रीफल होता है। 'सप्तशति' ग्रंथ में अठारह भुजायें वर्णित की गई हैं। अष्टदल कमल पर
इनका आसन लगा है। पीछे कलशयुक्त हाथी अभिषेक करता हैं । 'रूपमंडन' में वरद, त्रिशूल, ढाल और पानपात्र हैं। (९) महा सरस्वती
ज्ञानशक्ति की इन देवी को चार भुजायें हैं जिनमें माला, पुस्तक, अभय और पम होते हैं या वरद, कमल, वीणा
और पुस्तक भी होते हैं। हंस का वाहन है। (१०) श्रीदेवी:
ये कमलपर बैठी हुई है। दो भुजाओं में कमल और श्रीफल धारण किये हुए श्वेतवर्ण हैं। इनके दोनों ओर चामर
धारिणी दाहियाँ और हाथी कलश से अभिषेक करते हुए हैं। (११) भूदेवीः
विष्णु की मूर्ति के साथ दोनों तरफ छोटी देवी-मूर्तियाँ होती हैं। कमल और वरद मुद्रावाली इन मूर्तियों के कान में मकर कुंडल होते हैं। ये विष्णु पत्नी कहलाती है।
ये चार भुजा की श्री देवी के हाथ में रत्नपान, धान्यपान, औषध पान और कमल होते हैं । शेषनाग पर पैर होता है। भूदेवी की मूर्तियों का स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है। विष्णु या वराह के साथ ये होती हैं।
वराह स्वरूप में, दांत पर बैठी हुई भूदेवी (पृथ्वी) अत्यंत छोटे स्वरूप में होती है। कभी-कभी दांत पर पृथ्वी (भूदेवी) के स्थान पर एक गोला रहता है। कभी-कभी वराह के पैर के पास भूदेवी की मूर्ति शेषनाग के माथे पर पैर
रखकर प्रार्थना करती हुई खडी होती है। (१२) सरस्वती :
'अग्निपुराण के मत से इनकी पाठ भुजामों में धनुष, गदा, पाश, वीणा, चक्र, शंख, मुशल और अंकुश हैं। शिल्परत्न के मत से ये रक्त वर्ण की है। पद्मासन, माला, पाश, अंकुश और अभय होते हैं। अन्य मत से इनके पाँच मुख और तीन नेत्र होते हैं। प्रायुध इस प्रकार होते है : शंख, चक्र, कपाल, पाश, परशु, सुधाकुंभ, वेद, अक्षमाला, विद्या और पप ।
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