________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१२८
भारतीय शिल्पसंहिता
७. चामुंडा : प्रेत पर बैठी हुई, रक्त वर्ण, क्षीण, पतली, विकृत देह, दांत और भयंकर स्वरूपवाली चामुंडा के दस भुजायें होती
हैं। मुशल, चक्र, धनुष, अंकुश, खड्ग दायें हाथों में और बायें में ढाल, पाश, धनुष, दंड और कुल्हाड़ी रहती है। इस तरह मध्य में सप्तमातृकायें होती हैं। उनके दोनों ओर वीरभद्र-भैरव और गणेश होते हैं। वीरेश्वर के हाथ में वीणा, त्रिशूल, बाण और धनुष रहता है । उनका वाहन वृषभ होता है। गणेश मुषक वाह्न ; हाथ में दंत, परशु, अंकुश, मोदक ।
वीरेश्वर : सप्तमातृका या १९ योगी के आयजन में वीरेश्वर की मूर्ति की स्थापना करनी चाहिए। सप्तमातृका के प्राध में चार भुजा वाले वीरेश्वर कहे गये हैं। अन्य मत से उन्हें १० भुजायें भी होती हैं। तीन नेत्र हैं। माला, कमंडल, पद्म, शंख, गदा, त्रिशूल, डमरु, खड्ग, ढाल, वरद या अभय मुद्रा होती है।
जयोक्त देवता-मू प्रकरण में सप्तमातृकानों के स्वरूप इस प्रकार के कहे गये हैं।
ब्राह्मी, माहेश्वरी, वैष्णवी, वाराही और इंद्राणी की प्रत्येक की छ: छ: भुजाएँ, कौमारी की चार भुजायें, चामुंडा की दस भुजायें कही है। यहा रूपमंडन में चार भूजायें कही है-अपने अपने देवी की देवीयों का वाहन-हंस-बृषभ-मयूर, गरुड, हस्ती और चामुंडा प्रेतासनी कही है।
ब्रह्माणी चार मुख की, माहेश्वरी पाँच मुख और तीन नेन की, कौमारी छ: मुख की। वाराही का मुख वराह सदृश कहा है। प्राचीन काल की सप्तमातृकायें आसनस्थ-बैठी और खडी मूर्ति भी दिखाई देती हैं।
अन्य प्रमुख देवियाँ (१) भद्रकाली:
भद्रकाली को १८ भुजायें रहती है। ये चार सिंहों के रथ पर आलिढ्यासन में बैठी हुई होती है। कई जगह ये कमलासन में भी बैठी वणित की गई है। माला, त्रिशुल, खड्ग, चक्र, बाण, धनुष, शंख, कमल, सुवा, ढाल, कमंडल,
दंड, शक्ति, रत्नपात्र और दो हाथ ज्ञानमुद्रा के वर्णित किये गये हैं। (२) महाकाली:
जगदम्बा के तीन स्वरूप का प्राद्यस्वरूप महाकाली है, ऐसा तांत्रिक मानते हैं। तमोगुणी देवी काली का प्रदुर्भाव अंबिका के स्वरूप में से हुअा है, ऐसा मार्कंडेय कहते हैं। दसभुजा, श्याम वर्ण, तीन नेत्र, गले में मुंडमाला युक्त इनका भयानक स्वरूप है । हाथों मे खड्ग, बाण, गदा, त्रिशूल, शंख, चक्र, भुशंडी, परिघ, धनुष और रक्त टपकता मुंड होता हैं। प्रलयकाल में जगत ग्रास करनेवाली भगवती काली संहार का कार्य करती हैं। राजस्थान के आहवा गाँव में
१० मुख और ६० हाथों की इनकी नग्न प्रतिमा है। (३) चंडी :
सुवर्ण वर्ण, तीन नेत्र, यौवनावस्था, बड़े स्तन, एक मुख और बीस भुजावाली चंडी होती हैं । त्रिशूल, तलवार, शक्ति, चक्र, पाश, ढाल, अभय, डमरु, शक्ति, बाण बायें हाथों में रहते हैं। दायें हाथों में नागपारा, ढाल, कुल्हाड़ी, अंकुश
धनुष, घंटी, ध्वज, गदा, वज्र और मुंड ऊपरी क्रम के रहते हैं। (४) चामुंडा:
क्रूर, भयानक स्वरूप, पीले केश, हड्डियोंवाला स्वरूप और लाल नेत्रोंवाली चंडी व्याघ्रचर्म प्रोड़े हुए होती है। सर्प के आभूषणोंवाली 'कपालमालिनी' श्याम वर्ण की होती हैं। शव पर बैठी हुई चंड और मुंड को मारनेवाली, १६ हाथों में विशुल, ढाल, खड्ग, धनुष, पाश, अंकुश, बाण, कुल्हाड़ी, दर्पण, घंटा, वज्र, दंड, मुग्दर, बरद, मुंड और खेटक होते हैं। दस हाथों को चामुंडा का भी स्वरूप-वर्णन मिलता है। (देखिये : सप्तमातृका में नं.७)।
योगेश्वरी और कृषोदरी का स्वरूप भी इस स्वरूप से मिलता-जुलता है। (५) रक्तचामुंडा: योगेश्वरी :
तीन नेत्र, चार भुजायें, तीक्ष्ण खड्ग, पाश, मुशल और हल धारण किये हुए होती हैं।
For Private And Personal Use Only