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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अङ्ग : एकोनविंशतिम् देवी-शक्ति-स्वरूप आर्यों ने मातृपूजा अपनाई थी। मोहन-जो-दडो से प्राप्त हुए अवशेषों के आधार पर यह अनुमान किया जाता है कि भारत के सिवा अन्य प्रदेशों में भी भूमध्य सागर तक प्राचीन काल में मातृपूजा प्रचलित थी। शैव और वैष्णव संप्रदाय की तरह देवी का संप्रदाय शक्ति संप्रदाय' से ज्ञात होता है । शाक्त संप्रदाय में दुर्गा प्रधान देवी मानी जाती है। उसके अनेक नाम और स्वरूप विविध ग्रंथों में दिये हैं। भगवती दुर्गा के मुख्य तीन स्वरूप माने गये हैं: महालक्ष्मी, महाकाली और महासरस्वती। स्वरूप क्रमशः रजस्, तमस् और सात्विक गुणों के माने जाते हैं। ये ब्रह्मा, विष्णु और शिव के परम तेज से पुनरावर्तित तेज या शक्तियाँ मानी जाती हैं । शक्तिवाद के मूलतत्त्व वेद में से प्रादुर्भावित हुए है। वेद के बाद आरण्यक और उपनिषदों में उनका बहुत विकास हुआ। देवी उपासना में से मंत्रशास्त्र के स्वतंत्र सूत्र रचे गये हैं। वे सांकेतिक भाषा में तथा मिताक्षरों में हैं। वे मनुष्य को परब्रह्म स्वरूप भगवती जगदंबा की पराशक्ति से परिचित करा के मुक्ति दिलाते हैं। भारत में प्राचीन काल से ही शक्ति वाद का प्रचार हुआ था। उसके अवशेषों से यह सिद्ध होता है। मोहन-जो-दड़ो में हजार वर्ष पूर्व की मातृदेवी की मूर्तियाँ मिली हैं। मातृदेवी की पूजा भारत से बाहर के देशों में भी प्रचलित थी । ईसा पूर्व चार या पाँच शताब्दी के सिक्कों पर देवी-मूर्ति उकेरी गई है। उसी तरह देवी की मूर्तियों के प्राचीन शिल्प भी मिलते हैं। रूपमंऽनोक्त नवदुर्गा स्वरूप छ: भुजा चार भुजा १. महालक्ष्मी : २. नंदा: ३. क्षेमकरी: ४. शिवदूती: ५. महाचंडी: ६. भ्रामरी: ७. सर्वमंगला: ८. रेवती: ९. हरिरिद्ध: .. वरद, त्रिशूल, ढाल, पानपात्र, नाग अक्षसूत्र, खड्ग, ढाल, पानपान वरद, त्रिशूल, कमल, पानपात्र कमंडल, चक्र, ढाल, पानपान खड्ग, विशूल, घंटा, ढाल .. खड्ग, डमरु, खेट (ढाल), पानपान माला, वज्र, घंटा, पानपात्र दंड, त्रिशूल, खट्वांग, पानपान कमंडल, खड्ग, डमरु, पानपान रूपमंऽनोक्त और अपराजित सूत्र में उपरोक्त नवदुर्गा का स्वरूप कहा है। सप्तशती ग्रंथ में नवदुर्गा का स्वरूप पृथक इस तरह कहा है For Private And Personal Use Only
SR No.020123
Book TitleBharatiya Shilpsamhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherSomaiya Publications
Publication Year1975
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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