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भारतीय शिल्पसंहिता
बायें हाथों में गदा, दर्पण, वरद, चंद्र, खड्ग, अंकुश, ज्ञान पुस्तक, चामर कलश, निशूल, खट्वांग, अभय, विषपान, शंख, सर्प, मोदक, मद्यपान, वस्त्र, कमल, चक्र, वरद, दो हाथों की योनि मुद्रा और दो हाथ मस्तक पर-ऐसा स्वरूप स्वच्छंद भैरव का है।
वृषभ-नंदी : नंदी शिव का प्रिय वाहन है। शिवमंदिर में नंदी की स्थापना अनिवार्य है। प्राचीन काल में विदेशों में भी नंदी की पूजा होती थी। एशिया में नंदी देव के रूप में पूजा जाता था। मिस्र में वृषभ को पवित्र माना गया था। बेबिलोनिया और सीरिया में वृषभ-पूजा का बड़ा प्रचार था। पारसियों के अवेस्ता में भी बहेराम मझदा को वृषभ का स्वरूप कहा गया है। ख्रिस्ती धर्म में भी वृषभ का स्थान है। शरमेश (शिव) दो मुख (तीन मुख): अष्ट पाद (तीन पाद) दो पंख (याविपा पंख) लंबी पूँछ। सिंहमुख मुकुट धारण चतुर्भूज, पाश, परशु, मृग, मग्नि (तीन पाद के स्थान अष्टपाद भी कहाँ है।)
लकुलिश(पाशुपंत): पीछे संपूर्ण लिङ्ग, आगे पद्मासन । शिव-दो भुजा में दंड, बीजोरु (मातुलीनतीन नेत्र (गोद में) गुप्त ऊर्ध्वलिङ्ग।
सारे विश्व में नंदी देव की तरह पूजा गया हैं। मोहन-जो-दड़ो की खुदाई में से भी ५००० वर्ष पूर्व नंदी की मूर्तियाँ मिली हैं। दक्षिण प्रदेश में नंदी की विशाल मूर्तियाँ पायी जाती हैं। शिवालय के सामने उसके लिये स्वतंत्र मंडप भी बांधे गये हैं।
___ रामेश्वर और तांजोर के बृहदीश्वर' तथा मैसूर में नंदी १९-२० फूट के एक ही पाषाण में से सुंदर अलंकरण सहित बनाया गया हैं। इससे पता चलता है कि नंदी का कितना महत्त्व था।
प्राद्य देव रुद शिव का बडा महात्म्य वेद उपनिषद् आदि प्राचीन ग्रंथों में वर्णित है । पुरुषसुक्त में कहा है-रुद्र का अनंत स्वरूप है, अनंतमूर्ति है, सहस्र मस्तक है, सहस्र चक्षु है, सहस्र पाद है, सहस्र बाहु है, जिनका सहस्र नाम है ऐसे सहस्र युगों का धारण करनेवाला जगत में शाश्वत है।
एकद्धार शिवायतन-बायें गणेश, दायें पार्वती, नैऋत्य भास्कर, वायुकोणे जनार्दन, दक्षिणे मातृकानो, उत्तर में शांतिगृह, पश्चिमे कुबेर की स्थापना करना।
चतुर्मुख शिवायतन-मध्य में रुद्र, बायें शांतिगृह, दक्षिणे यशोद्वार, मातृका रुद्र के बायें महालक्ष्मी, उमा और भैरव, रुद्र के पीछे ब्रह्मा. और विष्णु, अग्निकोण में इंद्र, प्रादित्य और स्कंद, इशान्य में गणेश और धूम्र स्थापन करना। पुरुषसूक्त मे शिवजी के विश्वस्वरूप का वर्णन किया है।
सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपाद् ।
___स भूमि सर्वतः स्पृष्ट्वाऽत्यतिष्ठद् दशाङ्गलम् ॥ पुरुषसूक्त । जिस के हजारों शीर्ष है, जिस के हजारों चक्ष है, जिस के हजारों पैर है एसा विराट पुरुष समग्र विश्व को व्याप्त और भी विश्व के ऊपर दशांगुल (विश्व से पर) रह है।
शिव प्रतिहार
नागेंद्र कपाल
डमरु डमरु
बीजपुरक बीजपुरक
त्रिशूल डमरु
डमरु खट्वांग
गज तर्जनी
पूर्व द्वारे नंदी-(वाम) मातृलिंग
महाकाल-(दक्षिण) खट्वांग दक्षिण द्वारे हेरंब-(वाम) तर्जनी
भुंगी-(दक्षिण) गज पश्चिम द्वारे दुर्मुख-(वाम) त्रिशूल
यांपुडर-(दक्षिण) कपाल उत्तर द्वारे सित-(वाम)
मातृलिंग असित-(दक्षिण) पद्मदंड
खट्वांग
डमरु डमरु
कपाल बीजपुरक
मृणाल
खट्वांग मृणाल
पद्मदंड बीजपुरक
खट्वांग
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