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भारतीय शिल्पसंहिता
प्रसन्न किया। शंकर ने गंगा का गर्व हरण करने के लिये उन्हें अपनी जटा में उतार लिया इसीलिये वे गंगाधर कहलाये।
७. बिपुरान्तक: त्रिपुरासुर के पुत्र देवताओं को बहुत वास देते थे। तब शंकर ने उनका संहार किया। इसलिये वे त्रिपुरान्तक कहलाये।
९. अर्धनारीश्वर : प्रजा-उत्पत्ति का काम विधिवत् न होने से ब्रह्माने शिव का ध्यान लगाया। इसलिये अर्धनारीश्वर के रूप में शिव प्रगट हुए।
१०. गजहारीमूर्ति : काशी में कई ब्राह्मण शिवलिंग का पूजन करते थे। एक राक्षस हाथी का रूप लेकर उन ब्राह्मणों को त्रास देते थे। तब लिंग में से प्रगट होकर शंकर ने उस गजासुर का वध किया। इसलिये वे गजासुर मर्दन, गजहारी कहलाये ।
१२. कंकाल मूर्ति : जगतोत्पत्ति के बारे में ब्रह्मदेव के साथ शिव का वाद-विवाद हुआ। उसमें शिव ने भैरव को ब्रह्मा का पांचवा मस्तक उड़ा देने का आदेश दिया। और इस ब्रह्महत्या के पाप के निवारण के लिये वे काशी गये। उनको वहाँ पाप से युक्ति मिली। वे ही कंकाल मूर्ति बने।
१४. भिक्षाटन : दारुवन में स्त्री और बालक तप करते थे तब शिवजी ने कुरूप और नग्न स्वरूप धारण कर के जंगल में भिक्षा मांगी। इसलिये वे भिक्षाटन कहलाये।
१६. वक्षिणामूर्ति : शिव के योग और ज्ञान की प्रवीणता दिखानेवाली मूर्ति दक्षिणामूर्ति हैं।
ललाटतिलक मुद्रा : एक पैर ऊपर माथे तक ललाट में तिलक करती हुई मुद्रा में होता है। एक हाथ वरदमुद्रा में और दूसरे हाप से मस्तक की पोर पाद-ग्रहण की मुद्रा होती है। ऐसी मूर्ति दक्षिण के मीनाक्षी और कांजीवरम् के कैलास मंदिर में है। उत्तर भारत में ऐसी मूर्तियाँ नहीं मिलती।
शिव की संयुक्त मूर्तियां इस प्रकार हैं : १. अर्ध नारीश्वर : स्त्री-पुरुष का संयुक्त रूप । २. उमा-महेश : शिवजी के बायें पैर पर उमा बैठी हैं। ३. हरिहर : शिव, विष्णु के साथ, अनुरूप आयुध में ।
४ से ८. हरिहर पितामह, चंद्रार्ध पितामह, शिवनारायण, सूर्य हरिहर पितामह भौर चंड भैरव प्रादि संयुक्त मूर्तियों में दर्शाये हुए देव के भिन्न-भिन्न प्रायुध होते हैं।
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ललाटतिलक शिव
द्रविड-भिक्षाटन शिव
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