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महेश-शिव-रुद्र
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(१६) बक्षिणामूर्ति : ईशान कोण के दिग्पाल ईशा हैं। श्वेत कमल पर बैठे हुए वे श्वेत वर्ण के होते है। दक्षिणामूर्ति के बायें हाथ में सर्व आगम की पुस्तक होती है। ऊपरी हाथों में, सुधा-कुंभ है। बायें हाथ मुद्रा प्रतिपादन करते हैं । दायें ऊपरी हाथ में सफेद माला होती है। दक्षिणामूर्ति का दूसरा स्वरूप ज्ञान कोटि का है। वह योगासन में होता है। चार भुजानों में ज्ञानमुद्रा, अक्षमाला, कमल पौर अभय मुद्रा धारण की हुई होती हैं । नीचे अगल-बगल अगस्त्य और प्रामस्त्य दो ऋषि तथा दोनों बाजु उमा हैं । दूसरे एक प्रकार में व्याख्यान मुद्रा, रूक्षमाला, अमृतघट और दंड धारण किया होता है।
(१७) ब्रह्मशान जनार्दन (हरिहर पितामह ): सूर्य, ब्रह्मा, विष्णु और शिव इन चारो देवों का संयुक्त स्वरूप है। चार मुख तथा आठ भुजायुक्त इस स्वरूप के बीच में सूर्य होता है। उसके दो हाथों में कमल होता है। दक्षिण में शिव का मुख होता। उनके हाथों में खट्वांग और त्रिशूल रहता है। पश्चिम में ब्रह्मा का मुख रहता है। उनके हाथों में कमंडल और माला रहती है। बायीं भोर विष्णु मुख होता है। उनके हाथों में शंख-चक्र प्रायुध रहते हैं। द्रविड़ में शिव के प्रासंगिक स्वरूप भी दिये गये हैं । 'काश्यप शिल्प' में उनके १८ स्वरूप और लक्षण वणित किये गये हैं। १. सुखासन
१०. गजहारीमूर्ति (दो भेद) २. उमास्कंध
११. पशुपति ३. चंद्रशेखर
१२. कंकाल मति ४. वृषभ वाहन मूर्ति
१३. हरिहर ५. नृत्य शिव (नृत्य मूर्ति के नौ भेद) १४. भिक्षाटन ६. गंगाधर
१५. चंडेशानुग्रह ७. त्रिपुरान्तक (उसके आठ भेद) १६. दक्षिणामूर्ति (तीन भेद) ८. कल्याणमूर्ति
१७. कालहामूर्ति ९. अर्धनारीश्वर
१८. लिंगोद्भव इनमें से कई स्वरूपों के वर्णन इस प्रकार हैं : १. सुखासन : उमा के साथ बैठे हुए महेश का स्वरूप । ६. गंगाधर : उग्र तपश्चर्या से भगीरथ गंगा को पृथ्वी पर ले आये। उनका प्रबल वेग धारण करने के लिए उन्होंने शंकर जी को
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नटराज
गजहारी शिव
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