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महेश-शिव-वन
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उमा-महेश्वर
किरणाक्ष शिव
अर्धनारीश्वर
में शिव के कमल, खट्वांग, त्रिशूल, और डमरू है और बायें हाथ में कमंडल, माला, शंख और चक्र हैं । सर्व काम और फल देने वाले हिरण्यगर्भ का यह स्वरूप है।
(७) चंद्राक्रपितामह : यह सूर्य, चंद्र और ब्रह्मा का संयुक्त स्वरूप है। इसे छ: भुजाएँ और चार मुख होते हैं । वे सर्व प्राभूषणों से अलंकृत होते है। ऊपरी दो हाथों में कमल और बाकी दोनों हाथों में कमंडल तथा माला होती है।
(८) श्री हर मति : पांच मुख, तीन नेत्र और आठ भुजावाले इस स्वरूप के दायें हाथों में वरद, अंकुश, दंत और फरसी रहती है। बायें हाथों में कमल, माला, चक्र और गदा रहते हैं। हरिरुद्र और गणेशश्वर के वाहन वृषभ और मूषक हैं, जो सर्व अर्थ एवं काम के साधन रूप हैं।
(९) शिशुपालयुक्त त्रिपुरान्तक : ये एक मुख और दश हाथ युक्त, सिंह चर्मवाले, यज्ञ धर्म कार्य के देव हैं। लाल वस्त्र, और कोटि सूर्य-जैसे तेजवाले हैं। इनके जटा-मुकुट में चन्द्र धारण किया हुआ है। मुंडमालायुक्त स्वरूप के हाथों में खट्वांग, ढाल, दिव्य खप्पर, त्रिशूल, तुम्बर, धनुष-बाण, सारंग, पाश और अंकुश होते हैं। कुंडलों से अलंकृत शिव नृत्य में गोल घूमते दिखाई देते हैं।
(१०) नृत्यशिवः तपे हुए स्वर्ण के समान वर्णवाले इन शिव को ऊध्र्व केश होते हैं। हार, केयूर, भुजंग और सर्प के अलंकार से शोभित इस मूर्ति के हाथ लंबे होते हैं । व्याघ्रचर्मयुक्त होते हुए भी नृत्य के कारण यह मूर्ति सौम्य लगती है। शिव के बायें हाथों में ढाल, कपाल, नाग, खट्वांग, वरदमुद्रा तथा दायें हाथों में शक्ति, दंड, त्रिशूल और दो हाथों से नृत्य की मुद्रा होती है। गज चर्मयुक्त इन नृत्य शिव के दस हाथ हैं।
(११) विपुरदाह शिव-प्रतिमा : इसे सोलह हाथ हैं। ऊपर बताये दस हाथों के आयुधों के अलावा छ: अन्य आयुध इस प्रकार हैं। शंख, चक्र, गदा, शींग, घंटा और धनुष-बाण उनके हाथों में होते हैं।
(१२) शिव-नारायण : बायीं ओर माधव और दायीं ओर त्रिशूलपाणि होते हैं। बायीं ओर मणिबंध से विभूषित हाथ में शंख, चक्र (या चक्र के स्थान पर गदा भी) होते हैं। सर्व पापों का नाश करनेवाला यह स्वरूप है । दायीं पोर जटा और उसमें अर्ध-चंद्र सर्प के हारवलद होते है । दायें हाथों में वरदमुद्रा और त्रिशूल धारण किये होते हैं।
(१३) वीरेश्वर : सातमातृका की मूर्ति में प्रथम गणेश और अंत में वीरेश्वर की मूर्ति होती है। हाथ में वीणा और त्रिशूल धारण किया होता है । वृषा रूढ़ के सर पर जटामुकुट होता है।
(१४) चद्रकेशव : यह शिव और विष्णु का संयुक्त स्वरूप है । पैर के पास लक्ष्मी और गौरी की छोटी मूर्तियां होती हैं । बायाँ
हा भी) होते हैं। सर्व पापोभार निशूलपाणि होते हैं।
बार
के हारवलद होते
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