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भारतीय शिल्पसंहिता
१०. श्रीकंठ : विचित्र वस्त्र और यज्ञोपवीत युक्त यह महा ईशान विचित्र ऐश्वयं से विभूषित, सर्वालंकारयुक्त हैं। इन्हें एक मुख है। चार भुजाओं में खड्ग, धनुष्य-बाण और ढाल धारण किये होते हैं। मुकुट में चंद्र है ।
११. सदाशिव इनके तीन नेत्र, और चार भुजाएं होती हैं। दायें हाथों में पूर्ण अमृत कुंभ होता है वाकी हाथों में कुंभ घोर माला होती है। महा ऐश्वर्य देने वाले ये एकादश में रुद्र माने जाते हैं।
१२. द्वादश कला संपूर्ण मूर्ति सदाशिव: पद्मासन में बैठे हुए, दो हाथ योगासन मुद्रा में होते हैं। उनके पाँच मुख होते हैं । दायें हाथों में अभय, शक्ति, त्रिशूल, खट्वांग और बायें हाथों में सर्प, माला, डमरू, तथा बीजोर होते हैं। तीन नेत्र होते हैं। ये इच्छाज्ञान और ज्ञान के सागर रूप हैं । उत्तर भारत में यह द्वादश रुद्र बहुत प्रचलित हैं । कई ग्रंथों में एकादश स्वरूप भी दिये गये हैं ।
'रूपमंडन' में शिव के अन्य स्वरूप भी दिये हैं। वे इस प्रकार हैं। :
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अहिर्बुद्ध विरुपाक्ष
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बहुरूप सदाशिव, और
त्र्यंबक
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'अपराजित सूत्र' में वैद्यनाथ मूर्ति स्वरूप भी शिव के ही स्वरूप वर्णन में सम्मिलित किया गया हैं ।
१. अहिर्बुद्ध :-- दायें हाथों में ऊपरी क्रम से गदा, सर्प, चक्र, डमरू, मुग्दर, त्रिशूल, अंकुश और माला होती है। बायें हाथों में तोमर, पट्टिश, ढाल, कपाल, घंटा, शक्ति, परशु और तर्जनीमुद्रा होती है। इस प्रकार सोलह हाथों के आयुध वर्णित हैं।
२. बहुरूप सदाशिव: दायेंगीचे हाथों में डमरू, सुदर्शन, सर्प, त्रिशूल, अंकुश, कुंभ, गदा, जपमाला धौर बायें हाथों में ऊपर से नीचे के क्रम में घंटा, कपाल, खट्वांग, तर्जनीमुद्रा, कुंडिका, धनुष, परशु और पट्टिश धारण किये होते हैं ।
३. विरुपाक्ष :-- दायीं माठ भुजानों में खड्ग, त्रिशूल, डमरू, अंकुश, सर्प, चक्र, गदा, और माला धारण की हुई हैं। बायें आठ हाथों में ढाल, खट्वांग, शक्ति, परशु, तर्जनीमुद्रा, कुंभ, घंटा और कपाल । सब मिलाकर सोलह प्रायुध वर्णित हैं।
४. पंचक :-- दायें नीचे हाथों में क्रम से चक्र, डमरू, मुग्दर, धनुष, त्रिशुल, अंकुश, ढाल, माला और बायें हाथों में ऊपर से गदा, खट्वांग, पात्र, धनुष, तर्जनीमुद्रा, कुंभ, परशु और पट्टिश। इस प्रकार १६ आयुध होते हैं।
५. वंद्यनाथ मूर्ति :-क्षीर समुद्र में अमृत रूप, विष को हरानेवाले, सर्वं ऐश्वर्य देनेवाले, दारिद्र और कष्ट को नष्ट करने वाले, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देनेवाले, मुक्तामंडल से शोभित ये देव तरे हुए कंपन-जैसे वर्ण के होते हैं। सर्व प्राभूषणों से मंडित और प्रभामंडल से शोभित यह स्वरूप त्रिनेत्री है। उसकी जटा में चंद्र शोभा दे रहा है । व्याघ्रचर्म श्रोढ़े हुए, श्वेत वर्णं की सौम्यपूर्ति को नाग की यज्ञोपवीत होती है उसके हाथों में विशूल, माला, कपाल (कुंडिका) होते हैं करोड़ सूर्य सम रोजवाले पद्मासनयुक्त वैद्यनाथ शक्ति और आरोग्य के देव हैं ।
संयुक्त प्रतिमाएँ
(1) उमा-महेश्वर शिवजी की गोद में बायीं घोर बैठी हुई उमा को शिवजी के बायें हाथ का मालियन है। शिव के दायें हाथों में बीजोरू और त्रिशूल है। बायें हाथ में सर्प है। उमा का एक हाथ शिवजी के स्कंध पर आलिंगन युक्त है। तथा दूसरे हाथ में दर्पण है। उनकी मूर्ति के नीचे वृषभ कुमार (कार्तिक वाहन) और गणेश हैं।
(२) हरिहर पितामह: एक पीठ पर, एक शरीर में, हरि, हर और पितामह विष्णु, शिव और ब्रह्मा तीनों के, सर्व लक्षण साथ में ही स्पष्ट हैं। चार मुख, छः भुजा, दायें हाथों में माला, त्रिशूल और गदा तथा बायें हाथों में कमंडल, खट्वांग, और चक्र धारण किये हुए हैं। गरुड़, नंदी और हंस के वाहन हैं।
(३) हरिहर मूर्ति : हरिहर मूर्ति में दायीं ओर शिव और बायीं ओर हृषिकेश के आयुध वरदमुद्रा, त्रिशूल, चक्र और कमल है | नीचे दायीं बाजू वृषभ-नंदी और बायीं ओर गरुड़ का वाहन है। श्वेत- नील वर्ण है। यह विष्णु तथा शिव का संयुक्त स्वरूप है ।
(४) अर्धनारीश्वर : इस में बायाँ अर्ध देह स्तनयुक्त उमा का है। एक कान में ताडपत्र, और दूसरे कान में कुंडल, एक ओर मणिकयुक्त मुकुट और दूसरी ओर जटामुकुट है। बायीं ओर स्त्री (उमा) स्वरूप है, जिस में सर्व श्राभूषण है। दायीं ओर पुरुष रूप शिव हैं । उनके दायें हाथों में त्रिशूल और माला है तथा बायें हाथ में में दर्पण और गणेश हैं। कटिमेखला युक्त यह स्वरूप शिव ने ब्रह्मा की सृष्टि के सर्जन के समय दिखाया था ।
(५) कृष्ण-शंकर मूर्ति: यह कृष्ण और शंकर का संयुक्त स्वरूप होता है । बायीं ओर कृष्ण मुकुटधारी होते हैं तथा दायीं मोर शिवजी जटामुकुटयुक्त होते हैं। दायें कान में कुंडल और बायें कान में मकर कुंडल होता हैं । दायें हाथ में माला और त्रिशूल तथा बायें हाथ में चक्र और शंख धारण किये होते हैं।
(६) हरिहर हिरण्यगर्भ चार मुख, माठ भुजा युक्त यह स्वरूप विष्णु और शिव और ब्रह्मा का संयुक्त स्वरूप है। दायें हाथों
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