________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
११४
भारतीय शिल्पसंहिता
मनुष्य-शिल्पी ने जिसे बनाया है, उसे मनुष्यलिंग कहते हैं। उसे प्रासाद के प्रमाण से बनाया जाता है। राजलिंग की लंबाई से तीसरे भाग की चौड़ाई करनी चाहिए। राजलिंग की ऊँचाई के तीन भाग करने चाहिए। नीचे के चौरस भाग को ब्रह्मभाग, मध्य के अष्टकोण भाग को विष्णुभाग और ऊपर के गोल भाग को शिव भाग कहते हैं । ब्रह्मभाग भूमि में, विष्णुभाग जलाधारी में और ऊपरी शिवभाग प्रगट रहता है।
PME
it.e.1
-
आधार
चमार सवय जपमा
प्रबन
Motianit-पकि
व्यक्ताव्यक्त-मुखलिंग
गर्भगृह देव स्थापन विभाग क्रम राजलिंग या घटितलिंग में शलिंग, सहस्रलिंग और धारालिंग की प्राकृति भी होती है।
अर्थात उस में छोटे-छोटे लिंग भी दिखाये जाते हैं। राजलिंग का प्रमाण एक हाथ से नौ हाथ तक का होता है । नौ हाथ से बड़े लिंग देवालय में नहीं, खुले मोटे पर स्थापित करके पूजने को कहा है। नवरत्नलिंग, सप्तधातु, पाषाणलिंग, काष्टलिंग आदि के माप-प्रमाण कहे गये हैं। देवालय के मापों के प्रमाण से लिंग का प्रमाण होता है। चौथा प्रकार : व्यक्ताव्यक्त :
व्यक्ताव्यक्त मूल लिंग को कहते हैं। लिंग के ऊपर एक, तीन, चार या पाँच मुख की आकृति बनाई जाती है। लेकिन पंचमुख के लिंग क्वचित् ही मिलते हैं। शिव के अवतार समान लकुलिश की मूर्ति दो हजार साल पहले दिखाई दी थी। ऊँचे लिंग के अगले भाग में बैठे हुए लकुलिश भाग भगवान के एक हाथ में दंड और दूसरे हाथ में बीजारे, माथे पर जटा और गोद में उर्ध्वलिंगयुक्त मूर्तियां भी दिखाई देती हैं। लकुलिशजी ने शिव का पाशुपत संप्रदाय चलाया था। वे मूल गुजरात के बडोदे के पास करवण (कायावरोहण) के थे, लेकिन उनका संप्रदाय द्रविड़ में बहुत फैला । उन्होंने आगम ग्रंथ भी लिखे है। पाषाण परीक्षा
लिंग और मूर्तियों के पाषाण की परीक्षा कैसी करनी चाहिए उसका वर्णन शिल्पग्रंथों में दिया गया है। तीन प्रकार की परीक्षा इस प्रकार है:
१. एक ही वर्ण की (रंग की) नक्कर, चीकट शिला जिसकी आवाज काशी के घंट-सी हो, वह पुल्लिग'। २. तांबे का कांशिये-जैसी तीक्ष्ण आवाजवाली शिला स्त्रीलिंग, पौर३. जिसमें कोई आवाज ही न हो, वह नपुंसक शिला समझनी चाहिए।
For Private And Personal Use Only