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महेश-शिव-श
११३
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सुक्षाकृत
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१.
जाम
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लाल - राजलिंग सहस्रलिंग धारालिंग
राजलिंग का स्वरूप विभाग करना चाहिए। तीनों बार वजन अलग-अलग हो तो उसे शुभ मानना चाहिए क्योंकि 'तुला साम्य व जायते'। जिस से तोल सरीखे न हों उसे ग्रहण करके पूजन करना चाहिए । जब कि सरीखे तोल वाले को त्याज्य बताया गया है।
चार हाथ (आठ फिट) तक के मंदिर को शिवालय माना जाता है। उसमें बाणलिंग की स्थापना करनी चाहिए। चार हाथ से बड़े प्रासादों में राजलिंग (घटित लिंग, घाटयलिंग, मनुष्य लिंग) की स्थापना करनी चाहिए। बाणलिंग के बाद राजलिंग पाता है।
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प्रति मानुषलिम-राजलिंग का विभाग और शिरोवर्तन
ससमाधि
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