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विष्णु
'विष्णु के स्वरूप वर्णन के अंत में कहा गया है :
नमोस्त्वनंताय सहस्रमूर्तये, सहस्र पदाक्षिशिरोरुबाहवे । सहस्र नाम्ने पुरुषाय शाश्वते, सहस्र कोटि युग धारिणे नमः ।
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हजारों स्वरूपवाले हजारों चरणवाले, हजारों नेजवाले, हजारों मस्तकबाले, हजारों पैरवाले हजारों बाहुबाले, अंत रहित, हजारों नामवाले, सहस्र कोटि युगों की धारण करनेवाले शाश्वत परम पुरुष को नमस्कार हैं ।
शालिग्राम :
जैसे शिव का अव्यक्त स्वरूप लिंग है, वैसे ही विष्णु का प्रतीक शालिग्राम है। लेकिन जैसे शिवलिंग के मंदिर हैं, वैसे शालिग्राम के स्वतंत्र मंदिर नहीं पाये जाते ।
शालिग्राम गोल चपटे होते हैं। चक्र की प्राकृतिवाले और छिद्रवाले भी होते हैं। गंडकी नदी से वे प्राप्त होते हैं। शालिग्राम की शिला में सुवर्ण का अंश होने से उसे हिरण्यगर्भ भी कहा जाता है।
शालिग्राम के ऊपर अंकित चिह्न चक्र, वर्ण आदि के माध्यम शास्त्रकार पहचान जाते हैं कि वे कौन से विष्णु भगवान का प्रतीक है। शालिग्राम जितना छोटा होता है, उतना ही वह अधिक पूज्य माना जाता है।
महाभारती
शालिग्राम के गुण-दोष उसके चिह्न या प्रकृति पर से समझे जाते हैं। शालिग्राम की प्रतिष्ठा करने का निषेध है। विष्णुमंदिर में मूर्ति के पास शंख और शालिग्राम दोनों रखे जाते हैं । रामानुज संप्रदाय में शालिग्राम के पूजन-अर्चन की बड़ी महिमा है ।
गरुड़ :
श्री विष्णु का वाहन गरुड़ है। उसके चार भुजाएं होती हैं। एक हाथ में छत और दूसरे में पूर्णकुंभ होता है। दो हाथ अंजलिमुद्रायुक्त होते हैं । उसका वर्ण मरकत मणि-जैसा होता है। नासिका शुक जैसी, उसके पैर गिद्ध पक्षी जैसे होते हैं। उसे पंख भी होते हैं और अलंकारों से वह विभूषित होता है उसकी मुद्रारुहासन की विरासन होती है।
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विष्णु प्रायतन :
केशव, वासुदेव, संकर्षण, प्रद्युम्न या अनिरुद्ध को मध्य में स्थापन करके पूर्व में नारायण, अग्निकोण में जनार्दन, दक्षिण में पुंडरीकाक्ष । नैऋत्य में पद्मनाथ, पश्चिम में गोविंद, वायव्य में माधव, उत्तर में मधुसूदन और ईशान्यकोण में विष्णु की स्थापना की जाती है।
हनुमंत
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अगर मध्य में जलाशयी स्वरूप रखा जाय तो अगलबगल दशावतार रखकर, वराह को प्रथम रखना चाहिए।
चार दिशा के आठ प्रतिहार विष्णु-प्रतिहार हैं। पूर्व में चंड- प्रचंड, दक्षिण में जय-विजय, पश्चिम में घाता विधाता और उत्तर में भद्रसुभद्र हैं। ये आठों वामनाकार बनाने चाहिए। उनके प्रायुध इस प्रकार हैं : तर्जनी, शंख, चक्र, दंड, पद्म, खेटक गदा, खड़ग, बाण, धनुष ।
लक्ष्मण
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राम सीता
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भरत
श्रीश्रार्या