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विष्णु
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बैकुंठ
. कृष्णकातिकेय पुरुषोत्तम
विश्वरूप _ 'देवता मूर्ति प्रकरण' में बीस भुजा के विश्वरूप के आयुधों में भी अन्तर मिलता है। दो हाथों में पता का और दो हाथ योगमुद्रायुक्त होते हैं। ४. वैकुंठ :
_ 'रूपमंडन' में उन्हें चार मुख और पाठ भुजा के कहा गया है। दायीं भुजा में चक्र, बाण, तलवार, गदा और बायीं भुजा में शंख, ढाल, धनुष, कमल हैं। 'मानसोल्लास' और 'विष्णुधर्मोत्तर' में उन्हें चार हाथों के कहा है। ___ गरुड़ पर सवार यह मूर्ति सर्वालंकार युक्त होती है। चतुर्मुख-गरुड़ासन: ___ विष्णु के ये चार स्वरूप अनंत, त्रैलोक्य मोहन, विश्वरूप और वैकुंठ की सुंदर मूर्तियाँ 'अपराजित','सूत्रधार', 'देवता मूर्ति प्रकरण' और 'रूपमंडन' के वर्णन के आधार पर गुजरात और राजस्थान में बहुत देखी जाती हैं।
'अग्निपुराण' या विष्णुधर्मोत्तर' के ग्रंथों के पाठ के अनुसार मूर्तियाँ शिल्पित अभी तक नहीं पायी गयीं। शेषशायी विष्णु :
विष्णु को शयन प्रतिमा शेषशायी या जलशायी कहा जाता है। शेषनाग पर शयन करने से शेषशायी और क्षीरसागर-जल में शयन करने से उन्हे जलशायी कहा है । अनंत काल तक शयन करने से वे अनंतशायी भी कहे गये हैं । पृथ्वी के उद्धार के लिये महाप्रलय तक शेष पर्यक पर उन्होंने समुद्र-निवास किया, ऐसी पुराणों में कथा है।
क्षीर समुद्र में शेषशायी बायीं ओर शयन करते हैं। माथे पर पांच या सात फण, हैं, लक्ष्मी जी पर दबाती हैं। चारों भुजाओं में, बायीं मोर शंख-चक्र और दायीं ओर गदा-पद्म धारण किये होते हैं।
__ नाभि कमल से उद्भवित ब्रह्म स्तुति करते हैं । नाभि-कमल के कारण वे 'पद्मनाभ' कहे गये हैं । कई जगह एक हाथ माथे के नीचे रखा हुआ मिलता है । कमलकी नाल में मधु-कंटभ नामक राक्षस हैं ऐसा भी कई मूर्तियो में पाया जाता है।
शेषशायी भगवान की मूर्ति के चारों ओर देवता स्तुति करते हैं। आसपास ऋषि-मुनि, हंसारूढ़ ब्रह्मा, वृषारूढ़ उमा-महेश आदि होते हैं, ऐसी मूर्ति में नाभि-कमल से निकलते ब्रह्मा नहीं होते हैं।
ब्रह्मदेश में जलशायी मूर्ति के नाभि-कमल के तीन विभाग होकर ऊपर के पक्ष पर ब्रह्मा, विष्णु और महेश होते हैं। लक्ष्मी-नारायण :
गरुड़ पर या पासन पर बैठे हुए विष्णु का दायां पैर लटकता होता है और बाये पैर पर लक्ष्मी जी विराजमान होती हैं, जिनका
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