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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०६ भारतीय शिल्पसंहिता और गरुड़ का आसन होता है। यह वर्णन 'रूपमंडन' और 'विष्णुधर्मोत्तर' में मिलता है। किरीट-मुकुट, कुंडल आदि सर्व प्राभूषण युक्त तथा योगमुद्रा या ज्ञानमुद्रायुक्त अनंत भगवान की चौदह हाथों की मूर्तियों का आधार नहीं मिलता है। १. अनंत विष्णु : 'विष्णु धर्मोत्तर' ग्रंथ में उनका वर्णन इस प्रकार है : चार भुजा, मस्तक पर सर्प का फन, दायें दो हाथो में कमल और मुशल तथा बाये दो हाथों में हल एवं शंख या सुरापात्र होता है। इस तरह बलराम का स्वरूप अनंत रूप है। वे शेषनाग के अवतार माने जाते है। वे सर्व आभूषणयुक्त हैं और मस्तक पर के सर्प के फन पर पृथ्वी है। २. लोक्य मोहन : ___ अग्निपुराण में उन्हें अष्टभुज और चतुर्मुख कहा है। दायें हाथों में चक्र, बाण, मुशल और अंकुश है, जब कि बायें हाथों में शंख, धनुष, गदा और पाश हैं । गरुड़ का वाहन और उनके दोनों ओर लक्ष्मी तथा सरस्वती हैं। "विणु धर्मोत्तर', 'देवता मूर्ति प्रकरण' और 'रूपमंडन' में उन्हें सोलह भुजा के कहा गया है। दायीं भुजाओं में गदा, चक्र, अंकुश, बाण, भाला, चक्र, वरदमुद्रा और बायीं भुजाओं में श्रृग, कमंडल, कमल, शंख, सारंग, पाश या मुग्दर, बाकी दो हाथों की योगमुद्रा होती हैं । वे सर्व अलंकारयुक्त होते हैं। उपरोक्त चार मुख । योग-मुद्रा के दो हाथों के सिवा चौदह भुजा के स्वरूप को त्रैलोक्य मोहन भी कहा है। ३. विश्वरूप : 'अग्निपुराण' और 'रूपमंडन' में बीस भुजा और चार मुख वर्णित हैं। दायीं भुजाओं में चक्र, तलवार, मुशल, अंकुश, पद्म, मुग्दर, पाश, शक्ति, त्रिशूल और बाण होते हैं । बायीं भुजाओं में शंख, धनुष, गदा, पाश, तोमर, नागर, फरसी, दंड, छुरिका और ढाल होतें है। गरुड़ासीन इस स्वरूप के अगलबगल लक्ष्मी और सरस्वती हैं। उपरोक्त चार मुख । 'रूपमंडन' में दो हाथ योगमुद्रा के लिये वर्णित हैं। 'रूपमंडन' में वर्णित चार भुजा और बीस भुजाओं के आयुधो में अन्तर है। योगमुद्रा, पताका, वन, फल और पुष्पमाला, यह अन्य प्रायुधों की जगह, 'रूपमंडन' में वर्णित हैं। दस हाथ की भी कई मूर्तियाँ दिखाई देती हैं, लेकिन उनके लिए शास्त्रों का आधार नहीं मिलता। वरद, अभय और योगमुद्रायुक्त चार हाथों की ये मुद्रायें वैकुंठ के अन्य चार आयुधों की जगह हैं । इस मूर्ति के नीचे पृथ्वी देवी होती है। जन स्या KH COM श्री अनंत भगवान श्री वैलोक्य मोहन श्री त्रैलोक्य भगवान (अन्यमत) हरिहर For Private And Personal Use Only
SR No.020123
Book TitleBharatiya Shilpsamhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherSomaiya Publications
Publication Year1975
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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