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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतीय शिल्पसंहिता २. कपिल गीता में कहा है कि वे बड़े तपस्वी थे। भागवत में उन्हें सांख्य-शास्र के प्रणेता माने हैं। उनके पिता कर्दम और माता हुति थे। पाताल में जब वे तप कर रहे थे, तब सागर पुत्रों ने उनको सताया था; तब कपिल मुनि ने उनकी ओर क्रोध से देखा था और वे सभी भस्म हो गये थे। गुजरात में सरस्वती के पास उनका स्थान माना गया है। ___'विष्णु धर्मोत्तर' में उनका स्वरूप वर्णन करते हुए कहा गया है कि पद्मासन युक्त, चार भुजावाले हैं। उनके नीचे के दो हाथ योगमुद्रा में हैं और ऊपर के दो हाथों में वे शंख और चक्र धारण किये हैं। वे जटा-मुकुट और यज्ञोपवीतधारी, तथा लंबी डाढ़ीवाले होते है। अन्य मत से उनके आठ हाथ वर्णित है, जिसमें अभय, चक्र, खड़ग, हल, कमरपट, शंख, पाश और दंड होते हैं। ३. दत्तात्रेय अत्रि-ऋषि और अनुसूया के पुत्र । देवों ने अनुसूया के सतीत्व की परीक्षा करने के लिये नग्नावस्था में ही उससे भिक्षा ग्रहण करने का आग्रह किया; तब अनुसूया ने ब्रह्मा, विष्णु और महेश को बालक बनाकर, मातृभाव धारण करके उन्हें भिक्षा दी। इसीसे तीनों देव बड़े प्रसन्न हुए, और सती के यहां दत्तात्रेय बनकर अवतरित हुए। 'मार्कण्डेय पुराण' में एक दूसरी भी कथा है। अत्रि ऋषि ने पुत्र प्राप्ति के लिए उग्र तपश्चर्या की थीं, तब ऋषि के मस्तक से त्रैलोक्य दाहक ज्वाला उत्पन्न हुई थी; उसे शांत करने के लिए तीनों देवों को अनुसूया के यहां जन्म लेना पड़ा। 'अग्नि पुराण' में दत्तात्रेय के दो हाथ कहे हैं, जबकि 'दत्तात्रेय-कल्प' में चार हाथ कहे हैं। दो हाथ व्याख्यान मुद्रा में, तीसरे में कमल, और चौथा घुटने पर ढाल कर, आंखें मुंदे बैठे होते हैं। बदामी की गुफा में दत्तात्रेय की मूर्ति है। योगासन में बैठे हुए, वे चार हाथोंवाले होते हैं। ऊपरी दो हाथों में चक्र और शंख, नीचे के दोनों हाथ एक के ऊपर एक रहते हैं, और कई बार एक हाथ व्याख्यान मुद्रा में भी रहता है। मूर्ति की बैठक के नीचे नंदी, गरुड़ और हंस के तीन वाहन भी पाये जाते हैं। कभी पिछली पीठिका में दशावतार भी उत्कीर्ण होते हैं। उत्तर भारत या गुजरात में दत्तात्रेय की प्राचीन मूर्ति नहीं मिलती है। महाराष्ट्र में बहुत से लोग दत्तात्रेय को मानते हैं। फिर भी वहां मध्यकाल के पहले की मूर्तियां नहीं दिखाई देतीं। लेकिन महाराष्ट्र की कल्पनानुसार उनके तीन मुख, छः हाथ, दो पैर है, उनके परिपार्श्व में चार कुत्ते और कामधेनु गाय है। पिछले दो सौ वर्षों के अरसे में ऐसे शिल्प उत्कीर्ण किये गये हैं। ४. हंस सनकादि ने अपने पिता ब्रह्मा को तत्वज्ञान संबंधी कुछ प्रश्न पूछे। उनका समाधान ब्रह्मदेव भी न कर पाये। इसलिए ब्रह्मा ने, ईशचितन किया, उस समय हंस के रूप में प्रगट होकर ईश्वर ने प्रश्नों के उत्तर दिये। भागवत की इस कथानुसार हंस भी एक अवतार माना गया। 'श्रीतत्वनिधि' ग्रंथ में हंस-मूर्ति ध्यान में बैठी हुई, श्वेतवर्ण वाली, दो हाथ में शंख-चक्र धारण किये खड़ी वर्णित है । कक्ष में प्रिया स्त्रीरूप भी है। ५. कुमार सनक, सुनंदन, सनातम् और सनत कुमार, इन चारों ब्रह्मपुत्रों ने अखंड ब्रह्मचर्य व्रत लेकर बड़ी कठिन तपश्चर्या विनष्ट की थी और देवत्व के मार्ग को पुनः जीवित किया था। इसलिये उनकी गिनती भगवान के अवतार के रूप में की गई है। उनका वर्णन बाल-स्वरूप में मिलता है। लेकिन उनका मूर्ति-शिल्प आज कहीं भी नहीं पाया जाता। ६. यज्ञ या सुयज्ञ ___भागवत में यज्ञ-सुयज्ञ का वर्णन मिलता है। वे विश्व के दुःख दूर करनेवाले विष्णु के अंशावतार माने गये हैं। 'मत्स्यपुराण' में कहा गया है कि यज्ञ धर्म से उत्पन्न हुए हैं। इनकी भी मूर्ति कहीं नहीं दिखाई देती। ७. नारद भागवत में नारद को भी ग्रंशावतार माना गया है। नारद ने सात्वत तंत्र का उपदेश दिया था। शिल्पशास्र में उनके स्वरूप का कोई उल्लेख नहीं मिलता। फिर भी 'नय संग्रह' में उनका वर्णन करते हुए कहा है कि उनके दो हाथों में अक्षमाला और कमंडल है, और बाये स्कंध पर वे बीना धारण किये हैं। उनका स्वरूप भक्त संग्रह' में भी वर्णित है। ८. पृथु बहुत प्राचीनकाल में वेन नामक राजा के अनिष्ट पाचरण से प्रजा को बहुत कष्ट हुआ था। ऋषियों ने उन्हें उपदेश दिया फिर भी For Private And Personal Use Only
SR No.020123
Book TitleBharatiya Shilpsamhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherSomaiya Publications
Publication Year1975
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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