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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra विष्णु बलराम कृष्णावतार www.kobatirth.org १. ऋषभदेव बुधावतार अथदशावतार मत्स्य यो स्वस्वरूपों वराहो गजम्बुजम् वि श्याम बराहास्यो ष्ट्राता ॥१॥ सिंहः सिंहोऽतिबं हिरण्योरः स्यूसासक्त विचारणकरयः ॥२॥ वामनः सशिखः स्यामो वंडी छत्राम्बुपानवान् जटा जिव धरो राम्रो भार्गवः परशुबधत् ॥ ३॥ रामः शरेषु धृक् श्यामः शर्शीर मुशलो बल बुद्ध पद्मासनो रक्त स्त्यका भरण मूर्धला ॥ ६ ॥ कषाय वस्त्रो ध्यानरो द्विज पाकि कल्की खङ्गी हयाढो व्ययतारा हरें रिमे ॥५॥ इति दशावतार विष्णु स्वरूप । इस तरह दशावतार अब हम यहां उन १५ अवतारों का स्वरूप वर्णन देखें: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only कल्की ९७ आदिकाल में ताभिराजा और मारुदेवी के घर ऋषभदेव ने जन्म लिया था, ऐसी कथा भागवत के पांचवें स्कंध में है, और ऋषभदेव की कथा के चार-पांच अध्याय उसमें हैं। सभी प्राश्रमों के श्रेष्ठ मार्ग उन्होंने दिखाये थे । उग्र तप का आचरण भी उन्होंने किया और जगत को व्यवहार मार्ग की ओर जाने के लिये भी बोध दिया। इसीलिए उनकी गिनती अवतारी पुरुष में हुई । ऋषभदेव की स्वतंत्र मूर्ति दिखाई नहीं देती। उनकी कल्पना तपस्वी के रूप में हो सकती है। जैन धर्म में ऋषभदेव के प्रथम तीर्थकर माने गये हैं । बुद्ध को भी अवतारी पुरुष माननेवाले हिन्दू धर्म ने, जैन और बौद्ध दोनों धर्मो के प्रति सहिष्णुता का भाव रक्खा है, ऐसा कहा जा सकता है।
SR No.020123
Book TitleBharatiya Shilpsamhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherSomaiya Publications
Publication Year1975
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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