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विष्णु
बलराम कृष्णावतार
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१. ऋषभदेव
बुधावतार
अथदशावतार
मत्स्य यो स्वस्वरूपों वराहो गजम्बुजम् वि श्याम बराहास्यो ष्ट्राता ॥१॥ सिंहः सिंहोऽतिबं
हिरण्योरः स्यूसासक्त विचारणकरयः ॥२॥ वामनः सशिखः स्यामो वंडी छत्राम्बुपानवान् जटा जिव धरो राम्रो भार्गवः परशुबधत् ॥ ३॥ रामः शरेषु धृक् श्यामः शर्शीर मुशलो बल
बुद्ध पद्मासनो रक्त स्त्यका भरण मूर्धला ॥ ६ ॥
कषाय वस्त्रो ध्यानरो द्विज पाकि
कल्की खङ्गी हयाढो व्ययतारा हरें रिमे ॥५॥ इति दशावतार विष्णु स्वरूप ।
इस तरह दशावतार
अब हम यहां उन १५ अवतारों का स्वरूप वर्णन देखें:
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कल्की
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आदिकाल में ताभिराजा और मारुदेवी के घर ऋषभदेव ने जन्म लिया था, ऐसी कथा भागवत के पांचवें स्कंध में है, और ऋषभदेव की कथा के चार-पांच अध्याय उसमें हैं। सभी प्राश्रमों के श्रेष्ठ मार्ग उन्होंने दिखाये थे । उग्र तप का आचरण भी उन्होंने किया और जगत को व्यवहार मार्ग की ओर जाने के लिये भी बोध दिया। इसीलिए उनकी गिनती अवतारी पुरुष में हुई । ऋषभदेव की स्वतंत्र मूर्ति दिखाई नहीं देती। उनकी कल्पना तपस्वी के रूप में हो सकती है। जैन धर्म में ऋषभदेव के प्रथम तीर्थकर माने गये हैं । बुद्ध को भी अवतारी पुरुष माननेवाले हिन्दू धर्म ने, जैन और बौद्ध दोनों धर्मो के प्रति सहिष्णुता का भाव रक्खा है, ऐसा कहा जा सकता है।