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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विष्णु वह नहीं सुधरा। इसलिये प्रजा ने ही उसका वध करके एक पुरुष उत्पन्न किया। उसने प्रथम, लोगों को कृषि विद्या सिखाकर, प्रजा को सुखी बनाया। अथर्ववेद और ब्राह्मण ग्रंथों में उनके राज्याभिषेक से संबंधित आख्यायिकाएं है। उन्हें पुराणों ने प्रभु के अंशावतार के रूप में माना है। 'विष्णुधर्मोत्तर' में पृथु का स्वरूप चक्रवर्ती राजेन्द्र जैसा बताया गया है। ९. त्रिविक्रम विष्णु के २४ भेदों में भी त्रिविक्रम का स्वरूप दिया गया है। वामन और त्रिविक्रम के स्वरूपों में किंचित भेद है। हाथ में छाता, दंड, कमंडल और संन्यासी जैसा खुले सर वाला वामन का स्वरूप है। ____ विष्णु धर्मोत्तर' में उनके ८ हाथ बताये हैं। दंड, पाश, शंख, चक्र, गदा तथा पद्म धारण किये हुए हैं। दोनों हाथों से शंख बजाता हुआ उनका मुख ऊर्ध्व होता है। चार हाथ वाले वर्णन में कहा गया है कि एक हाथ से शंख बजाते हैं। और बाकी दो हाथों में अभय या चक्र और वरदमुद्रा होती है। दायां पैर नीचे और बायां पैर ऊर्ध्व आकाश में रहता है। महाबलीपुरम के त्रिविक्रम अष्ट भुजायुक्त है। उनके हाथों में तलवार, गदा, बाज, चक्र, शंख, सुचिमुद्रा, ढाल और धनुष होते है। दायां पर स्थिर और बायां पैर आकाश की ओर होता है । अगलबगल श्री और लक्ष्मी रहती है। त्रिविक्रम के माथे पर मुकुट रहता है। मोढेरा के सूर्यमंदिर के त्रिविक्रम का स्वरूप इस प्रकार है: अतिभंग में विश्वरूप धारण करके वे खड़े हैं। उनके पैरों के पास वामन और बलिराजा दक्षिणा लेते हुए खड़े हैं । अजमेर के म्यूजियम में ऐसी ही एक मूर्ति है, जिसके चार हाथ, पद्म, गदा, चक्र और शंख धारण किये हैं। दाहिना पैर नीचे पृथ्वी का, और बायां पैर ऊँचे आकाश का रूपक व्यक्त करता है । त्रिविक्रम के माथे पर किरीट मुकुट होता है। १०. हयशिर्ष वैदिक वाङमय में वर्णित है कि अग्नि, इन्द्र, यज्ञ और वायु इन चार देवों ने मिलकर एक यज्ञ शुरू किया था। उसका देवी यश अकेले यज्ञ ने ही ले लिया था। इससे बाकी के तीनों ने युक्ति से यज्ञ का शिरच्छेदन कर दिया था। और बाद में उसको अश्व का मस्तक जोड दिया गया था। ऐसा हयशिर्ष का स्वरूप है। दूसरी एक कथा इस प्रकार है कि दैत्य का वध करने और मधु कैरभ को मारकर वेद वापस लाने के लिये भगवान को यह अवतार लेना पड़ा था। ___ 'अग्नि पुराण' में हयग्रीव के चार हाथ बताये हैं। उनमें शंख, चक्र, गदा और वेद है। उनका बाया पर शेषनाग पर और दाहिना पैर घूर्मपर होता है । वे अश्वमुख होते है। ___ 'विष्णु धर्मोत्तर' के अनुसार उनके पैर पृथ्वी पर होते हैं। वे आठ हाथों में शंख, चक्र, गदा, पद्म, बाण, खड्ग, ढाल और धनुर्धारी होते हैं। वेदों के माथे पर उनका हाथ होता है। वे अश्वमुख, नीलवर्ण, और संकर्षण का अंश होता है। हयग्रीव परम ज्ञानी, सर्वविद्या के उपासक माने जाते हैं। द्रविड़ देश में वे बहुत प्रचलित है। उत्तर भारत में उनकी मूर्तियों के मंदिर नहीं हैं। ११. नरनारायण ये धर्म के पुत्र हैं। इन्होंने बद्रिकाश्रम में उग्र तप किया था, इसीसे इन्द्र ने इनके तपोभंग का प्रयत्न किया था। लेकिन उसमें वे असफल रहे। 'महाभारत' और 'देवी भागवत' में इनकी कथा है। श्रीकृष्ण और उनके मित्र की भी नरनारायण के रूप में कल्पना की जाती है। 'चमुर्वर्ग चितामणी' में उनका स्वरूप वर्णन करते हुए लिखा है कि, उनका वर्ण भूरा है , और उनके चार हाथ हैं, उनमें से दाहिने हाथों में शंख चक्र और बायें हाथों में गदा और पद्म या वीणा रहती है। दाहिनी ओर पद्मधारी मुष्टि है। जटामंडलयुक्त वे, अष्चट-चक्र रथ पर एक पैर टिकाये होते हैं, और उनका दूसरा पैर घुटनों से नारायणी के पास टिका होता है। बद्रीफल की टोकनी पास में रखी हुई होती है । किरीट मुकुट, केयूर, मकर-कुंडल आदि प्राभूषणधारी नरनारायण की बहुतसी मूर्तियां पायी जाती हैं। १२. धन्वन्तरी देवों और दैत्यों ने अमृत पाने के लिए समुद्र मंथन किया था, तब उसमें से जो चौदह रत्न निकले थे, उनमें अमृत से भरा घड़ा लेकर धन्वन्तरी भी प्रकट हुए थे । पुराणों में उनका वर्णन मिलता है। 'विष्णु धर्मोतर' में उनके स्वरूप-वर्णन में कहा गया है कि सुंदर मुखाकृतिवाले धन्वन्तरी के दोनों हाथों में अमृतकुंभ होता है। 'शिल्परत्नम' में उनको चार हाथों वाले बताया हैं। जिनमें कमल, अभय, अमृतकुंभ और शस्त्रयंत्र होते हैं । धन्वन्तरी ने पीत वस्त्र धारण किया है। For Private And Personal Use Only
SR No.020123
Book TitleBharatiya Shilpsamhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherSomaiya Publications
Publication Year1975
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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