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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतीय शिल्पसंहिता ग्रंथ दायें बायें वाहन हाथों के प्रायुध १. मत्स्यपुराण चार सरस्वती सावित्री हंस कमंडल व स्त्रुव दंड (छ: हाथ) धृतपान, चारवेद २. अग्निपुराण सावित्री सरस्वती हंस अक्षमाला, स्त्रुव, घृतपान, कमंडल (डाढ़ी) ३. विष्णुधर्मोत्तर चार (सावित्री के साथ पद्मासन में बैठे हुए प्रजापति) " दूसरा मतः (बद्ध पद्मा सात हंस का अक्षमाला, स्त्रुव, कमंडल सन में ध्या रथ, योगमुद्रा नस्थ ब्रह्मा) , तीसरा मतः (लोकपाल माला, पुस्तक, कमंडल, कमल ब्रह्मा) ४. ब्रहद् संहिता कमंडल और स्त्रुव ५. मानसार (छ: हाथयुक्त) कमंडल, वरद, स्त्रुव, अभय माला ६. शारदातिलक कमल, माला, वरद, अभय ७. अभिलाषितार्थ । चिन्तामणि और , चारमुख सरस्वती चार वेद और घी का पात्र, ८. शिल्परत्नम् । छःहात सावित्री वरद, स्त्रुव, कमंडल ९. समरांगण सूत्रधार चारमुख अक्षमाला, वरद, दंड, कमल १०. देवतामूर्ति प्रकरण । चारो दिशाओं की और मुख, तीन-तीन प्रांख और ११. और रूपमंडन उनके जटामुकुट में अर्धचंद्र. प्रायुध विश्व ब्रह्मा के चार स्वरूप इस प्रकार भी है : १. विश्वकर्मा (विरंचि) द्वापर में माला, पुस्तक, कमंडल और स्त्रुव २. कमलासन कलियुग में माला, स्त्रुव, पुस्तक और कमंडल ३. पितामह वेतायुग में माला, पुस्तक, स्त्रुव, और कमंडल ४. ब्रह्मा " कृतयुग में पुस्तक, माला, स्त्रुव और कमंडल सभी ग्रंथों में भिन्नता है, फिर भी थोडा-सा साम्य भी कहीं कहीं पाया जाता है। ब्रह्मा की मूर्ति में प्रादेशिक भिन्नता भी पायी जाती है। दक्षिण में ब्रह्मा की मूर्ति ललितासन में बिना डाढ़ी की और डाढ़ीयुक्त भी मिलती है। कई जगह ब्रह्मा का विचित्र स्वरूप भी पाया जाता है। एक हाथ में पाश और एक हाथ कमर पर भी होता है। खेड़ ब्रह्मा में लायी गयी ब्रह्मा की मूर्ति का वाहन नंदी और अश्व है। गुजरात में ब्रह्मा की अनेक मूर्तियां खड़ी और बैठी हुई भी पायी गयी है। एक ही मुख के ब्रह्मा और कमल पर बैठे हुए ब्रह्मा भी पाये गये हैं। द्रविड़ कंबल दोडुबसाया में ब्रह्मा की पाँचमुख और चार हाथ वाली एक विलक्षण मूर्ति पायी गई है। पूर्व में मुसीशुपे (मोसेपोटामिया? ) में ब्रह्मा ललितासनयुक्त, दाढ़ी, पाँच मुख और दस हाथवाले हैं। उसमें त्रिशूल और नाग भी है। दक्षिण में एक ही पंक्ति में बनाये गये चारों मुखवाली ब्रह्मा की मूर्तियां पायी जाती है। बौद्ध धर्म में हिन्दु देव-मूर्तियों का तिरस्कार पाया जाता है। बौद्धों की प्रसन्न तारादेवी अपने हाथ में ब्रह्मा का मस्तक लिये और पैरों के नीचे इन्द्र, विष्णु और रुद्र को कुचलती हुई वर्णित है। बौद्धों की विद्युत-ज्वाला करालीदेवी भी एक हाथ में ब्रह्मा का मस्तक लिये,पैरों नीचे विष्णु, रुद्र को कुचलती हुई वर्णित है । तांत्रिक ग्रंथों में (माला में) ऐसी भ्रष्ट मूर्ति का वर्णन है। बौद्ध संप्रदाय में जबसे तांत्रिकता पायी, तबसे ऐसी अनेक मूर्तियाँ बनने लगी थी। हिंदु धर्म के देवताओं का इतना तिरस्कार करने से ही शायद बौद्ध धर्म भारत में अधिक प्रचलित न हो सका और उसे भारत के बाहर चले जाना पड़ा। जैन संप्रदाय में अन्य धर्मों के देवों के प्रति इतना तिरस्कार पाया नहीं जाता। शायद इसीलिये उनका धर्म भारत के सभी प्रान्तों में आज भी विद्यमान है। For Private And Personal Use Only
SR No.020123
Book TitleBharatiya Shilpsamhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherSomaiya Publications
Publication Year1975
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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