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अङ्गः षोडशम्
ब्रह्मा
वैदिक संप्रदाय में रजस, सत्व और तमस गुण प्रकृति वाले मुख्य तीन देव माने गये है। सृष्टि के कर्ता बह्मा सत्व प्रकृति के माने गये है। विश्व के पालक विष्णू रजस प्रकृति के माने गये है और सृष्टि के पापकर्म का संहार करने वाले शिव तमस प्रकृति के माने जाते है। __ब्रह्मा के और भी कई नाम है। प्रात्मम्-स्वयम्, धाता-विधाता, विश्वश्रुक, पितामह, सृष्टा, कमलासन, हिरण्यगर्भ, विरंचि, चतुरानन आदि।
स्वयंभू-स्वयम् नाम से पता चलता है कि वे किसीसे उत्पन्न नहीं हुए है । बल्की उन्होंने स्वयम् ही सृष्टि उत्पन्न की है। पौराणिक कथा के अनुसार वे हिरण के रूप में थे इसलिये ये हिरण्यगर्भ माने गये है।
___ ज्योति, कमलासन, चतुरानन, स्वयं प्रकाशित कमल पर बैठे हुए, चार मुखबाले ब्रह्मा विष्णु के नाभि-कमल में से उत्पन्न होकर, वहीं बिराजमान हैं। यहां वे महत्त्व की दृष्टि से गौण हो जाते हैं।
ब्राह्मण ग्रंथों में विश्वकर्मन और प्रजापति दोनों एक ही रूप है । विश्वकर्मन सूर्य देवता का विशेषण है। वे सृष्टि के उत्पादक है।
मैत्रावली संहिता में प्रजापति की कथा इस प्रकार है: एकबार प्रजापति के मन में कन्या की अभिलाषा हुई। तद्नुसार उन्हें कन्या प्राप्त हुई और उसने हिरनी का रूप लिया। और प्रजापति ने हिरन का रूप लिया। इससे क्रोधित होकर रुद्र ने बाण का निशाना साध लिया। उस समय प्रजापति ने उनको वचन दिया कि यदि आप मुझे अभयदान देंगे तो मैं आपको पशुओं के स्वामित्व का पद दूंगा। इसलिये रुद्र पशुपति माने गये। यही कथा ब्राह्मण ग्रंथों में थोड़े-बहुत परिवर्तन के साथ दी गई है।
सृष्टि के कर्ता होने के नाते ब्रह्मा को पितामह कहे जाते है। उन्होंने शतरूपा, सावित्री, ब्रह्माणी और सरस्वती नामक कन्यामों के रूपदर्शन के लिये चारों दिशाओं में चार और ऊपर पांचवां मुख धारण किया था। किसी कारण से शंकर ने उनके पांचवें मुख का शिरच्छेदन कर दिया था । ऐसी पौराणिक कथा है।
ब्रह्मा अपूज क्यों रहे, उसके लिये भी एक अद्भुत कथा है । जब उन्होंने कहा कि लिंग के आदि और अंत का रहस्य पाने का वे प्रयत्न करते थे, तो उससे सावित्री लज्जित हुई और यज्ञदीक्षा के समय वह वहाँ समय पर न पा सकी। ब्रह्मा ने गायत्री नामक एक दूसरी पत्नी उत्पन्न की। इससे क्रोधित होकर सावित्री ने ब्रह्मा को श्राप दिया। तबसे ब्रह्मा का पूजन नहीं होता है। हमारे यहां ब्रह्मा के बहुत ही थोडे मंदिर और मूर्तियां मिलती है, शायद इसका यही कारण रहा हो। फिर भी कर्मकाण्ड आदि विधियों में ब्रह्मा का पूजन होता ही है। बहुत कम जगह पर उनके मंदिर मिलते हैं और बहुत ही कम मात्रा में उनकी मूर्तियां पूजी जाती है, खेड़ब्रह्मा ( ईडर ) खंभात के पास नगरा, दुदारी, वसंतगढ़, महाबलीपुरम् प्रादि स्थानों पर प्राचीन मंदिर और मूर्तियाँ पायी जाती है। फिर भी अन्य देव-देवी की अपेक्षा ब्रह्मा का पूजन, अर्चन विधि-विधान के अतिरिक्त स्वतंत्र रूप से बहुत कम होता है।
ब्रह्मा की अकेली मूर्ति के अलावा संयुक्त मूर्तियां भी मिलती है। शिव-पार्वती के विवाह में उन्होंने पुरोहित का कार्य किया था। उनकी त्रिमूर्ति में संयुक्त मूर्ति बड़ी प्रसिद्ध है।
विविध ग्रंथों में ब्रह्मा के स्वरूप-वर्णन इस तरह दिये गये है :
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