________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
८२
что
१)
२)
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
दिगंबर
शिवनृत्य
नामक ये ही दो तत्त्व हैं, इसीलिये शिवजी की 'अर्धनारीश्वर' मूर्ति प्रख्यात है। शिवजी के सयोनि लिंग एवं मूर्ति इन दोनों स्वरूपों की पूजा जगत में होती है । चारपाँच हजार वर्ष पहले के मोहें-जो-दड़ो और हरप्पा स्थानों में से इसके प्रतीकरूप अवशेष मिले हैं। शिवजी के प्रतीक के रूप में वा पूजे जाते है और विष्णु के प्रतीक के रूप में शालिग्राम की पूजा होती है, लेकिन जितना व्यापक हुआ है उतना वह व्यापक नहीं बना है ।
भारतीय शिल्पसंहिता
शिवलिंग के वैसे कई प्रकार हैं, उनमें व्यक्त, अव्यक्त और व्यक्ताव्यक्त ये तीन मुख्य प्रकार हैं।
स्वयम्भू लिग जो कि कुदरती रीति से भूमि में से निकलता है और वह पत्थर का होता है।
जो करने के घण्टे के आकार के होते हैं और वे शास्त्रीय पवित्र नदियों में से प्राप्त होते हैं, ये भी कुदरती होते हैं।
( ये दोनों प्रकार के लिंग अव्यक्त माने जाते हैं। )
३) राजलिंग - घटितलिंग - मानुषलिंग - यह लिंग अमुक प्रकार से गढ़कर तैयार किया जाता है, चौड़ाई से लगभग तिगुनी उसकी ऊँचाई होती है, नीचे के चतुरस्त्र भाग को ब्रह्मभाग और बीच के अष्टास्त्र भाग को विष्णुभाग कहते है, ऊपर का लिंग भाग है, ' जिसकी पूजा होती है । यह भी श्रव्यक्त लिंग का ही एक प्रकार माना जाता है ।
४) उपर्युक्त घटित हुए राजसिंग के मुखलिंग, एकमुख, त्रिमुख, चतुर्मुख एवं पंचमुख नामक पाँच प्रकार हैं, जिन्हें कम से (१) तत्पुरुष (२) र (३) सद्योजात (४) वामदेव और (५) ईशान कहते हैं। इसे व्यक्ताव्यक्त न कहते है। ५) पटित लिखाले तीसरे प्रकार में अष्टोत्तरशत (१०८) एवं सहस्रलिंग (१०००) भी होते हैं। सिंग में चारों ओर खड़ी पंक्तियाँ बनाकर उनमें अनेक लिंग के आकार बनाये जाते हैं, उसे धारालिंग अथवा नलिका लिंग भी कहते हैं । उसमें खड़े गोल कटाब ( दांते ) होते हैं। इसे अव्यक्त लिंग कहते है ।
मुखलिंग में कहीं कहीं चारों ओर आभूषण तथा आयुधों के साथ ब्रह्मा, विष्णु, महेश और सूर्य के स्वरूप होते हैं, खिरस्ताब्द के पूर्वकाल के ऐसे प्राचीन लिंग मिलते हैं ।
For Private And Personal Use Only
पूर्व में बालीद्वीप में कमल पर बना हुआ श्रष्टमुखलिंग का स्वरूप भी मिला है।
मौव आचार्यों में पाशुपत, लकुलीश, कापालिक, कालमुख और वीरशैव आदि आचार्य प्रसिद्ध हैं। उनके पंथ भी बने हैं । उनमें से कुछ तो तत्त्वज्ञानी और ग्रन्थकार हुए हैं। लकुलीश तो शिव के २८ वें अवतार माने जाते हैं। उन्होंने आगम भी लिखे हैं । ख्रिस्ताब्द के प्रारम्भ की कुछ शिवमूर्तियाँ लकुलीश के साथ गढ़ी मिलती हैं। ऐसी मूर्तियों में पीछे के भाग में लिंग और आगे के भाग में आसन पर बैठी हुई