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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वैश्य-समाज । ६७ कसर-बट्टा काट लिया और १००) की जगह ९६) रु० उसके हाथ पर रखे । और यदि बहुत ही दया की तो २४) रु० साल सूदका ले लिया। __ एक तो फसलके होने का कुछ ठिकाना नहीं । अगर अच्छी हुई तो सस्ते भाव में बेचनी पड़ी। क्योंकि सेठजी तकाजा करते हैं कि जल्दी रुपये दो, नहीं तो सूद दरसूद लगेगा। आखिर वह उन्हींके हाथ अपने खरे पसीनेकी कमाई बच देता है । सेठजी इस खरीदमें १२४) रु० के २००) बना लेते हैं । सेठजीको देकर कुछ बच गया तो बाल-बच्चोंकी परवरिश, कपडे, ढोरोंकी खुराक इत्यादिमें खर्च करना पड़ता है-- असली मलाई सेठजी चाट गये, केवल फीके दूध पर बेचारे किसानको पेट भरना पड़ता है, वह भी पूरी मिकदारमें नहीं। कभी पूरा भोजन पाया, कभी आधा ही पेट भरा, और कभी कभी तो पेटको पट्टी बांध कर ही रह जाना पड़ा । पट्टी बाँधनेको कपड़ा भी तो नहीं मिलता। ऐसी दशामें वह क्या करे ? क्या पेट पर पत्थर और बदन पर राख डाले । लाचार हो सेठजीसे कर्जकी प्रार्थना करनी पड़ती है । वे भी हा, ना कर आखिर राजी हो जाते हैं और बेचारे किसानके गले में कर्जका फन्दा इस तरह डाल देते हैं कि उसकी तमाम जायदाद हजम हो जाती है और वह दर दर मारा फिरता है । यदि हमारे बन्धु चाहें तो खुद भी अच्छी तरह लाभ उठा सकते हैं और किसानोंकी भी दुर्गतिसे रक्षा कर देशको दुर्भिक्षसे बचा सकते हैं । वह इस तरह कि सहकारी समितियोंमें हिस्से खरीद लिये जावें । हिस्सा ५०) रु० का होता है; और २ किश्तोंमें देना पड़ता है । हर एक किश्तकी माँग प्रति तीन मासमें होती है अर्थात् हर तीसरे महीने For Private And Personal Use Only
SR No.020121
Book TitleBharat me Durbhiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshdatta Sharma
PublisherGandhi Hindi Pustak Bhandar
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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