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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लगान। tive Societies ) स्थापित होना परमावश्यक है, जिनके द्वारा काश्तकारोंको अल्प व्याज पर यथेच्छ रुपया मिल सके। हमारे माननीय सम्राट् महोदय पंचम जार्जने एक बार अपने श्रीमुखसे कहा है किः___ " यदि इस देशमें सहकारिताकी प्रथा प्रचलित की जाए और उसका पूरा उपयोग किया जाए तो मुझे इस देशके कृषि-सम्बन्धी कार्यों में एक विशाल सुन्दर भविष्य दिखाई देता है।" जर्मनी, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, इंग्लैण्ड आदि देशोंकी स्थिति हमारे देशसे भी अत्यंत खराब थी, किंतु देहाती बैंकों तथा सहयोगसमितियों द्वारा उन्होंने अपूर्व उन्नति प्राप्त कर ली । हमारे भारतमें सबसे पहले सर विलियम वैडर्बनने सहकारिताका प्रस्ताव किया, परन्तु इसका प्रभाव सन् १८१५ ई० तक कुछ न हुआ। पर सन् १८९५ ई० में मद्रास प्रान्तीय सरकारने फ्रेडरिक निकोलसन नामक महाशयको यूरोप में इस लिये भ्रमण करनेकी आज्ञा और सहायता दी कि वे देखें कि सहकारिताके कौन कौनसे प्रकार यहाँ भारतमें प्रचलित हो सकते हैं । इनके भ्रमण परिश्रमका फल दो विशाल खंडोंमें संकलित है, उनका नाम Land Banks for the Madras Residency मद्रास प्रान्तके वास्ते जमीन सम्बन्धी बैंक। इधर संयुक्त प्रान्तमें चिरस्मरणीय छोटे लाट टॉमसन साहबने ड्युपर्ने महाशयसे इस ओर विचार तथा परिश्रम करनेका अनुरोध किया । तदनुसार ड्यूपर्ने ने Peoples Ban k for N.1. उत्तर हिन्दुस्थानके लिये जनताके बैंक नाम्नी पुस्तक लिख कर सहकारिताका प्रसार किया । इस समय तक यह कार्य जनता और प्रान्तीय सरकारका हो रहा । भारत सरकारका विशेष ध्यान इस ओर न गया । पर सन् १९०१ में हिंदुस्थानके उपकारक लार्ड कर्जनन For Private And Personal Use Only
SR No.020121
Book TitleBharat me Durbhiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshdatta Sharma
PublisherGandhi Hindi Pustak Bhandar
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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