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भारतमें दुर्भिक्ष। "जिस खेतकी सौ रुपये वार्षिक आय है उसका लगान यों देना पड़ता है:देशका नाम,
लगान रुपये। इंग्लैण्ड इटाली जर्मनी बेल्जियम
२॥ , हॉलैण्ड भारतवर्ष
१५ से २०),, तक। कठिनता तो यह है कि इस दरिद्रावस्थामें भी अन्य कई देशोंको अपेक्षा भारत पर टैक्स पाँच पाँच छः छः गुना अधिक है। सो भी ठीक वक्त पर दाखिल हो जाना चाहिए। चाहे तुम्हारी फसल हो या न हो। लगान देने में देर हुई कि जमीन नीलाम की गई। परिणाम यह होता है कि हमें महाजनोंकी शरण लेनी पड़ती है। वे सूदमें कमाल हासिल करते हैं । मूल धन १) रु० है तो दूसरे वर्ष उसीके तीन हो जाते हैं । कृषकोंको रुपया देते ही महाजनको नीयत बद हो जाती है। वे पहले दो चार साल तक तो कड़े सूद पर रुपया लगाते जाते हैं, और अन्तमें जब इच्छा होती है तब रुपयोंकी नालिश कर जमीन जायदाद अपने अधिकारमें कर लेते हैं। अदालत भी आँखें मूद कर एक रुपयेके सूद सहित ५) रु०की डिग्री दे ही देती हैं। __ महाजनों या साहूकारोंके यहाँसे कृषकों को बहुत कड़े सूद पर रुपया मिलता है, जिसकी वजहसे भी वे तबाह-हाल रहते हैं। अत एवं जहाँ तहाँ देहाती बेंक-सहयोग समितियाँ (Co-opera
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