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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कृषि। अच्छी नहीं होती होगी ? उसने कहा--खादसे क्या होता है, रामजी दें तो हर बहाने दे सकते हैं। मैंने कहा यदि गड्ढा खोद कर उसमें क्रिया-पूर्वक खाद तैय्यार की जाय और उस पर छप्पर आदि बना कर उसकी रक्षा की जाय तो बहुत कुछ उपज हो सकती है। उसने कहा--- हमारे बापदादोंने ऐसा नहीं किया-इत्यादि । प्रत्येक गावमें हर प्रकारको खाद बना कर बेचनेवालों तथा कृषिसम्बन्धी अन्य वस्तुओंके बेचनेवालोंकी आवश्यकता है। साथ ही कुछ शिक्षित पुरुषोंको इस कार्य में अग्रसर होकर हमारे कृषकोंके पथ-प्रदर्शक या आदर्श बन कर चलनेकी आवश्यकता है । हमारे अँगरेजी पढ़े-लिखे लोग बी० ए० की डिग्री प्राप्त होते ही वकालतकी ओर अपनी नजर न दौड़ा कर अमेरिकन कृषकोंकी अँाति कृषिकी ओर अपना लक्ष्य करें तो भारतका बहुत कुछ उपकार हो सकता है। विदेशी लोगोंने केवल कृषिका ही आश्रय नहीं लिया ह, किन्तु व्यवसाय अधिक और कृषिको कम कर दिया है। यह। उसके विपरीत देखने में आता है। दूसरे देशोंको खानेको भारत दे देता है, फिर फिक किस बातकी ? उन्होंने व्यवसाय द्वारा बहुत धन संग्रह कर लिया है, अत एव वे जहाँसे मिल सकता है महँगेसे महँगा अन्न लेकर भी खा सकते हैं। भारत खुद भूखा रहता है और दूसरोंकी क्षधा शांत करता है, कैसे आश्चर्य की बात है !! हमारी गवर्नमेंट भी तो इधर ध्यान नहीं देती। भारत जो कुछ मर-खप कर पैदाकरता है वह बाहर चला जाता है। भारतके सैकड़ों मनुष्य प्रति दिन कालके गालमें भूखों मरते हुए पहुँच रहे हैं । इतने पर भी हमारी सरकारको हमारी सुधि नहीं ? यह बड़ा ही विचित्र स्वार्थ है । क्या हम उसकी प्रजा नहीं हैं ? क्या हमारे रक्षणका भार उसके सिर नहीं है ? क्या वह ये सारे गुलछर्रे भारतके पीछे नहीं उड़ा रही है ? For Private And Personal Use Only
SR No.020121
Book TitleBharat me Durbhiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshdatta Sharma
PublisherGandhi Hindi Pustak Bhandar
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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