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भारतमे दुर्भिक्ष । वह रक्षक, जिसे शरणागतका ध्यान भी नहीं, रक्षक कहा जाय या भक्षक ! - हमारे देश में तो कृषिकी उपजके मानसे अधिक कृषकोंकी संख्या है । हम क्यों न भूखों मरें ? हमारे देशके मनुष्य दरिद्रतासे घबरा कर खेतीके सिवा अन्य कार्यको वैसे ही नहीं करते जैसे अँगरेजी पढ़े-लिखे भारतीय सिवा गुलामोके दूसरा काम नहीं देखते। हम नीचे एक नकशा देते हैं जिसमें यह दिखाया गया है कि अन्य देशोंमें प्रति शत कितने मनुष्य किन किन पेशोंके करने वाले हैंदेश, कृषि, शिल्प,
व्यापार इंग्लैण्ड अमेरिका जर्मनी भारत
इसके पूर्व
ई०सनमें, कृषक फी-सदी। अमेरिका
१७२० जर्मनी
१५५२ इंग्लैण्ड
१२४१ अन्य देशोंमें तो कुछ-न-कुछ घटे, किन्तु भारतमें १४ प्रति शत कृषक बढ़े। किसी समयमें उक्त देश भी, भारतसे अत्यंत दोन-हीन दशामें थे। परन्तु उन्होंने विद्या-बलसे आज अपनी उन्नति कर ली। भारतीय यदि सुधारकी ओर दृष्टि डालें तो कुछ कालमें ही देश धान्य
और धनसे परिपूर्ण दिखाई देने लगे । अन्य देशोंमें कृषक कम और उपज अधिक है। केवल यही एक अभागा देश है, जहँ। मूर्ख कृषक अधिक और उपज कम है !
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देश,
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