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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कृषि। Y 'फ्रांस और आस्ट्रेलिया इत्यादि देशोंको हराभरा और बलिष्ट बनाती हैं। समस्त यूरोप मांसाहारी है, अत एव वहाँ हड्डियोंकी बहुतायत तो है ही, तो भी अपनी भूमियोंको रत्न-प्रसू बनानेके लिये वे भारतसे हड्डियाँ मँगा रहे हैं । भारत संसारमें, खेतीके कामों में एक प्रतिष्ठित देश है, जिसे एक एक हड्डीकी आवश्यकता है । तो भी उसके यहाँसे प्रति वर्ष अधिकाधिक हड्डियाँ विदेशोंको जा रही हैं। यह बात मूर्खता पूर्ण और हमारी अज्ञानताकी द्योतक है । केवल एक वर्ष १९१०-१९११में १०२९१९५०) रु० की हड्डियाँ भारतसे विदेशोंको गई। लगभग ७० हजार टन हड्डियाँ प्रति वर्ष भारतसे बाहर जाती हैं । यदि भारतीय कृषक हड्डियोंको काममें लावें तो भारतमें दुर्भिक्ष क्यों पड़े ? थोड़ा ध्यान देने पर ही अल्प व्ययमें यहाँ हड्डियोंके पहाड़के पहाड़ लग सकते हैं । यूरोपके देशोंमें हड्डीकी खादका मूल्य ३० ) प्रति मन है । भारतीयोंको सोचना चाहिए कि विदेशी कृषक इतनी महँगी खाद अपने खेतोंमें डाल कर मनचाही उपज करते हैं। यदि भारत चाहे तो वही हड्डीकी खाद ५) रु. प्रति मनमें तैय्यार कर सकता है । हड्डियोंमें फासफरसका अंश बहुत होता है जो पौधोंकी बढ़िया खूराक है। - इसके अतिरिक्त विष्टाकी खाद भी ऊपर लिखित दोनों खादोंसे बहु मूल्य है । इसे Golden Mannure अर्थात् सुनहरी खाद भी कहते हैं। परन्तु इसके प्रयोगको लोग अपवित्र समझ कर इससे घृणा करते हैं। चीन और जापानके मनुष्य जिन्होंने खेतीमें अद्भुत उन्नति की है और जहाँकी कृषि-विद्याका प्रचार संसारमें प्रख्यात है, मानुषिक मल-मूत्रकी खाद बना कर अच्छी खेती करते हैं। वे मैलेको अपने हाथों उठाते और उसकी रक्षा करते हैं वे घर-घर मैला मोल लेने जाते हैं। जब उनको भारतके सम्बन्धमें For Private And Personal Use Only
SR No.020121
Book TitleBharat me Durbhiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshdatta Sharma
PublisherGandhi Hindi Pustak Bhandar
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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