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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कृषि | ३१ इन बातोंको ध्यान में रखकर अब फिर भी दुर्भिक्षके सच्चे कारणका पता लगाना है । थोड़े ही परिश्रम या खोजसे यह रहस्य खुल जाता है। मेरे विचारानुसार दुर्भिक्षका मुख्य कारण है भारतवर्षकी दरिद्रता । " नहिं दारिद सम दुख जग माँही " इस पद्यका दूसरा चरण भी याद रखने योग्य है, भूलिए मत" पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं । " -तुलसी भारतवासियोंके सारे आतङ्कका मूल कारण उनकी अपरिमित दरिद्रता -- बे-हिसाब गरीबी-- है । उनको सदैव हाय हाय लगी रहती है। वे जो कुछ पैदा करते हैं उसके चार हिस्सेदार खड़े हो जाते हैं । जमीदार, साहूकार या महाजन, आवपाशीका महकमा और मजदूर । इन चारोंमें से पहले तीन तो इतने जबरदस्त हैं कि बिना उनको चुकाये उनसे किसी भाँति छुटकारा ही नहीं । इस प्रकार दे चुकने पर जो कुछ उनके पास शेष रहता है उससे वे दो महीने यदि अपना गुज़र कर लें तो गनीमत समझिए । बादको किर जेवर, थाली लोटा, ढोर आदि बन्धक रख कर या बेच कर वे अपने दिन काटते हैं । इतने पर भी पूरा नहीं होता तो जमींदार या साहूकारके यहाँ अड़ कर बैठ जाते हैं और खेत या घर रेहन कर कुछ रुपया ले आते हैं । यहाँ तक तो उनको साधारण दशाका वर्णन हुआ। दुर्भिक्षमें क्या दशा होती होगी यह आप स्वयं विचार लें। अपने शरीर के सिवा उस समय उनके पास अपनी सम्पत्ति रह ही क्या जाती है ? फिर ये क्या करते हैं- धनहीन और बलहोन होकर प्राण विसर्जन कर देते हैं या दुर्भिक्षकी फसलकी भाँति खेतहीमें सूख कर पटरा हो जात ह । For Private And Personal Use Only
SR No.020121
Book TitleBharat me Durbhiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshdatta Sharma
PublisherGandhi Hindi Pustak Bhandar
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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