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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतमें दुर्भिक्ष । उपज कम नहीं होती। तीसरे इसके अतिरिक्त आपके देशमें ऐसा कोई स्थान न होगा जहाँ रेलकी लाइनें साँपको तरह न घुस गई हों। इस प्रकार सुखी प्रान्तोंसे दुखी प्रान्तों तक सरलता पूर्वक अन्न पहुँचाया जा सकता है । इससे पानी बरसनेकी कमीकी बात मानते हुए भी यह सिद्ध होता है कि न दुर्भिक्ष पड़ने चाहिए, न इतनी जाने ही जानी चाहिए। पर खेद है कि यहाकी दुखी प्रजाओंके पास अन्न मोल लेनेको पैसे ही नहीं। जिसके पास है वह खरीद कर ले ही जाता है। __ अब दूसरा प्रश्न आबादीका है । यह भी व्यर्थ सा ही है । क्या दुनिया भरसे यहाकी ही आबादी ज्यादा है ! भारतवर्षकी आबादी यूरोपकी अपेक्षा कम है, और फिर भी यूरोपमें कभी कोई दुर्भिक्षको स्व-नमें भी नहीं देखता। भूमण्डलके अनेक देशोंमें खेतीके योग्य भूमिका अभाव है, तथापि वहाके लोग भूखों न मर कर सालभर चैनका वंशी बजाते हुए अपना कालयापन करते हैं। अपने उपजाये अन्नसे वहाँके निवासी साल में केवल ९० दिनके लगभग निर्वाह कर सकते हैं; तो क्या बाकी दिनोंमें वहाँके लोग हवा खाकर जीवित रहते हैं ? जर्मनीका भी यही हाल है। वहाँकी उपज भी जर्मनोंकी केवल १०४ दिनोंकी खुराक है । और देशोंकी भी यही दशा है। इस पर भी कुछ जवाब है कि सात समुद्र पारवाले तो यहाँसे अन्न मँगा कर भोजन करें और हमारे घरमें अन्नका ढेर लगा रहने पर भी हम भूखों मरें । इसमें कोई सन्देह नहीं कि कृषिकी उन्नतिकी यहा बड़ी आवश्यकता है और बहुतसी भूमि जो अभी बे-जोती पडी है, उसे आवाद करना चाहिए । किन्तु यह भी निर्विवाद है कि यदि सुप्रबन्ध हो तो यहाँ दुर्भिक्ष फटक भी नहीं सकता। For Private And Personal Use Only
SR No.020121
Book TitleBharat me Durbhiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshdatta Sharma
PublisherGandhi Hindi Pustak Bhandar
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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