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कृषि
और परितापका विषय है ! पिछले वर्षोंमें आज तक जिस भौति दुर्भिक्ष दैत्यका अविराम आक्रमण होता आ रहा है उस अनुपातसे यह आशा करना व्यर्थं न होगा कि थोड़े दिनोंमें हम सबके सब दाने जद हो जायेंगे | अब विचारनेकी बात यह रही कि इसका कारण क्या है ? इस विषयमें विश्वासके लिये मैं अपनी ओरसे कुछ न कह कर विदेशी विद्वानों की ही राय उधृत करूँगा । साधारणतः लोग समझते हैं कि दुर्भिक्ष अनिवार्य हैं-रोके नहीं जा सकते और उनके प्रधानतः दो कारण हैं । (१) समय पर वर्षाका न होना या वर्षाका कम होना । (२) उचितसे अधिक जनसंख्या । सण्डरलैण्ड साहबका कथन है कि भारतवर्ष बहुत बड़ा देश है, वर्मा सहित इतने विशाल देशसे न्यूयार्क ( अमेरिका ) के सदृश ३६ राज्य काटे जा सकते हैं। प्रत्येक स्थानका जल-वायु भी भिन्न भिन्न है । भूमि भा एकसी नहीं, कहींकी जमीनमें ऊर्वरा शक्ति कम और कहीं अधिक है । वृष्टि भी कहीं अधिक होती है तो कहीं न्यून ।। ___ हम लोगोंको तीन बातें सदा ध्यान रखनी चाहिए। पहली बात तो यह है कि ऐसा कभी नहीं होता कि समस्त देशमें एक साथ दुर्भिक्ष पड़ा हो । अतः यह कहने की आवश्यकता नहीं कि अकालके दुष्कालमें भी हमारे देशके कितने ही सूबोंमें इतना अन्न पैदा होता है कि यदि वह बाहर न भेज दिया जाय तो महा विकराल दुर्भिक्ष में भी हमारे एक भाई के भी भूखों मरनेकी नौबत न आवे । दूसरे आबपाशीकी शिकायत भी आप नहीं कर सकते हैं। क्योंकि ईश्वरीय प्रकृतिकी कृपासे यहाँका भौतिक संगठन भी बड़े ठिकानेका है। आपका स्वदेश दो दिशाओं में समुद्रसे घिरा है। प्रान्तोंमें नहर और बड़ी बड़ी नदियाँ फैली हैं । मैं मानता हूँ कि इतने सामान ही आबपाशीके लिये यथेष्ट नहीं, किन्तु इस दशामें भी हमारे यहाँ अन्नकी
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