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भारतमें दुर्भिक्ष। एक समय लार्ड कर्जनने बड़े अभिमानके साथ कहा था कि भारतवासियोंकी वार्षिक आय ३०) रु० से कम नहीं । किंतु भारतहितैषी मि० डिग्बीने उस हिसाबको गलत साबित कर दिखाया कि यहाँवालोंकी वार्षिक आमदनी केवल १८॥) रु० है। टैक्स आदि चुकाने के बाद अनुमानतः घट कर १४ ) या १५) रु० ही रह जाती है। इस सुवर्णमय विस्तृत भुमिकी आय तो यह, किंतु और और देशोंकी आय तो जरा देखिए-~देश,
वार्षिक आय। आष्ट्रेलिया इंग्लैण्ड
६३०) संयुक्त राज्य अमेरिका बेल्जियम
४२०) फ्रांस जर्मनी
३३०) भारतवर्ष कहिए यह अभागा देश औरोंकी अपेक्षा कितना कंगाल है ! जिस चढ़ी-बढ़ी दरिद्रताके कारण उसको पेट भर अन्न दुष्प्राप्य हो रहा है वह भला अपने यहाँ किन किन चीजोंमें सुधार करे !
हमारे भारतीय कृषक कूप-मंडूककी भाँति अपने पैतृक खेतोंमें कीड़ोंके जैसे बने रहते हैं। कभी बाहरके नगरोंका प्रवास नहीं करते । यात्रा करनेसे डरते और कॉपते हैं। प्रवाससे ज्ञान, वीरता उत्साह और नवीनता आती है। परन्तु ये लोग अपना घर नहीं छोड़ते । कृषक अपने देशकी दशा नहीं समझते । देश-दशाका विचार तो दूर रहा, वे पशुकी भाति आहार, निद्रा, भय, मैथुन और
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