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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतमै दुर्भिक्ष । अत्यन्त बुद्धिमान्, विद्वान् और कला-कुशल थे। उन्होंने वहाँ पर विद्या और वैद्यकका प्रचार किया । वहाँके निवासियोंको सभ्य और अपना विश्वास-पात्र बनाया । ग्रंथकार एरियन और यूनानका इतिहास बताता है कि-" जो लोग पूर्व दिशासे यहाँ यूनानमें आकर बसे थे, वे देवताओंके वंशज थे। उनके पास अपना निजका सोना, बहुत अधिकतासे था। वे रेशमी कामदार दुशाले ओढ़ते थे, हाथीदातकी वस्तुएँ प्रयोगमें लाते थे और बहुमूल्य रत्नोंके हार पहन ते थे।" महाभारत ग्रंथसे भी यह प्रकट है कि कुरुक्षेत्रके महा प्रलयकारी संग्रामके पश्चात् भारतीयोंके कितने ही कुल पश्चिमकी ओर. गये और यूनान, फेनीशिया, फिलस्तीन, कार्थेज, रूम और मिश्र आदि देशोंमें जा बसे । रूसके नोटविच नामक यात्रीको तिब्बतके 'हीमिस' नामक मठमें ईसाका एक प्राचीन हस्त-लिखित जीवनचरित्र मिला है। वह पाली भाषामें है और उसकी दो बड़ी जिल्दें हैं। उसमें लिखा है कि-"ईसा इसराइल में पैदा हुआ था और उसके माता-पिता गरीब थे। १३, १४ वर्षकी उम्रमें वह अपने माबापसे रूठ कर घरसे भाग निकला और भारतमें आया । यहाँ वह राजगृह, काशी और जगन्नाथपुरी आदि स्थानोंमें घूमता रहा और आय्याँसे वेदाध्ययन करता रहा । इसके बाद उसने पाली भाषा सीखी और बौद्ध हो गया। पर उसने अपने देशको लौट कर वहाँ नया ही धर्म चलाना चाहा । इसी झगड़े में उसे फाँसीकी सजा हो गई।" इससे ज्ञात होता है कि ईसाई धर्म भी अन्य मतोंकी भांति भारतवर्षकी ही सामग्री है। Theogony of the Hindus: (हिन्दूके देवताओंकी वंशावली ) नामक पुस्तकके लेखक Count forns Jerna (काउन्ट जॉर्स जेर्ना ) लिखते हैं कि-" भारत केवल हिन्दूधर्मकां ही घर नहीं है, बरन् वह संसारकी सभ्यताका For Private And Personal Use Only
SR No.020121
Book TitleBharat me Durbhiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshdatta Sharma
PublisherGandhi Hindi Pustak Bhandar
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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