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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विषय-प्रवेश। आदि भण्डार है । भारतीयोंकी सभ्यता क्रमशः पश्चिमकी ओर ईथो. पिया, ईजिप्त और फेनीशिया तक; पूर्वमें श्याम, चीन और जापान तक; दक्षिणमें लङ्का, जावा और सुमात्रा तक और उत्तरकी ओर फारस, चाल्डिया और वहाँसे यूनान और रोम हियरवोरियन्सके रहने के स्थान तक पहुँची।" __ अब धीरे धीरे पश्चिमी विद्वान् इस बातको मानने लगे हैं कि प्राचीन भारत खूब उन्नत दशामें था और इसीने युरोपमें तरह तरहकी विद्या, कला और बहुतसी अन्यान्य वस्तुओंका प्रचार किया था। देखिए डेलमार साहब " इन्डियन रिव्यू " नामक पत्रमें लिखते हैं" पश्चिमी संसारको जिन बातों पर अभिमान है वे असलमें भारत वर्षसे ही वहाँ गई थीं । तरह तरहके फल, फूल, पेड़ और पौधे जो इस समय यूरोपमें पैदा होते हैं, सब हिन्दुस्थानसे ही वहाँ पहुँचे हैं। इसके सिवा, मलमल, रेशम, घोडे, टीन, लोहा और शीशेका प्रचार भी यूरोपमें भारतबर्षहीक द्वारा हुआ था । केवल यही नहीं किन्तु ज्योतिष, वैद्यक, चित्रकारी और कानून भी भारतने ही यूरोपवालोंको सिखाया था।" एक बार अध्यापक मैक्समूलरने अपने व्याख्यानमें कहा था कि-" यदि कोई मुझसे पूछे कि वह देश कौन और कहाँ है, जहाँ पर मनुष्योंने इतनी मानसिक उन्नति की हो कि वह उत्त'मोत्तम गुणोंकी वृद्धि कर सका हो और जहाँ मानव-जीवन-सम्बन्धी बड़ी बड़ी गृढ बातों पर विचार किया गया हो और जहाँ उनके हल करनेवाले पैदा हुए हों ? तो मैं यही उत्तर दूंगा कि “ वह देश भारतवर्ष है ।" विस्तार-भयसे हम यह। पश्चिमी विद्वानोंकी अधिक सम्मतियोंका उल्लेख नहीं कर सकते । पाठक मण स्वयं ही उनका अनुमान कर लें। For Private And Personal Use Only
SR No.020121
Book TitleBharat me Durbhiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshdatta Sharma
PublisherGandhi Hindi Pustak Bhandar
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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