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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४४ भारतमें दुर्भिक्ष । ष्टाण्डर्ड वस्त्र बनवाने पर उद्यत हुई थी। इसके फलसे भारतीय वस्त्रकी महार्यता कुछ घट गई थी। किन्तु जैसे ही वस्त्र-व्यवसायियोंको यह विदित हुआ कि गर्जनके उपरान्त वर्षण न होगा यानी इस सरकारी आज्ञाके अनुसार कार्य न होगा; वैसे ही उन सबने वस्त्रकी गिरी हुई दर एक बार फिर चढ़ा दी। इस समय वस्त्रको दर प्रायः पूर्ववत् है । भारत-सरकारके इस गर्जनके अनुसार भारतके सम्भवतः एक प्रदेशमें वर्षण हुआ है। इस प्रदेशको नाम बिहार और उड़ीसा है। उस दिन इस प्रदेशकी सरकारकी ओरसे प्रकट किया गया है कि इसने अपने प्रदेश में प्रचुर संख्यक सरकारी वस्त्र मँगा उन्हें विलायती वस्त्रकी अपेक्षा सैकड़े पीछे तीस या चालीस रुपये कम दर पर बेचना आरम्भ किया है। हम जहाँ तक समझते हैं, अन्यान्य भारतीय प्रदेशों में ऐसे वस्त्रका प्रचार नहीं हुआ है । उस दिन बङ्गीय व्यवस्थापक-सभामें इस विषयका एक प्रश्न होने पर सरकारकी ओरसे कहा गया,--" वस्त्रकी दर गिर जाने से सरकारी वस्त्र मँगाये न गये ! इन वस्त्रोंका मँगाया जाना घटनाचक्र पर निर्भर करता है।" सुभानल्लाह ! कितनी प्यारी बात है। बङ्गाल-सरकारको इस बातकी खबर ही नहीं कि सरकारी वस्त्रके आगमनके समाचारने ही वस्त्रकी दर गिराई और उसके न आनेसे यह गिरी हुई दर एक बार फिर चढ़ गई । इस तरह इस विषयका अभाव दूर करनेके सम्बन्धमें प्रत्यक्षमें अभी तक कोई भी उपाय किया नहीं गया है। यह बात ठीक नहीं । हम इन दोनों अभावोंकी ओर भारत-सरकारकी दृष्टि आकृष्ट करते हैं। यही समय है कि भारत सरकार इन For Private And Personal Use Only
SR No.020121
Book TitleBharat me Durbhiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshdatta Sharma
PublisherGandhi Hindi Pustak Bhandar
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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