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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૨૨૦ भारतमें दुर्मिक्ष । हम लोग ' उन्नत भारत' या 'सुखी भारत' कहते हैं, अकालोंके मारे मरा मिटता है। सन् १७७० ई० से सन् १८७८ तक बड़े भयंकर दुर्भिक्ष पड़े, इनमें यदि १८८९, १८९२, १८९७ और १९०० ई० के अकाल भी मिला दिये जायें तो २२ वोर दुर्भिक्ष होते हैं । जिनका वर्णन सुन कर विदेशी लोग काँप उठते हैं।। . (१) बंगालका अकाल सन् ई०१७७१ ई० । बंगाल प्रान्तको सरकारी नौकरोंने ,तबाह कर दिया था। लोग अत्यन्त दुखी और निर्धन हो गये थे। कोर्ट आफ डाइरेक्टर्सने अपने १७ मई सन् १७६६ के पत्रमें अपने नौकरोंके अत्याचारों पर शोक प्रकट किया था " The corruption and rapacity of our servants " देखिए । सरकारी कर्मचारियोंने वूम-घूम कर जाँच की तो पता लगा कि बंगाल प्रान्तके मनुष्य इस दुर्भिक्षमें मरे, मृत्यु-संख्या एक करोड़ थी। । (२) मद्रासका अकाल सन् १७८३ ई. । मत्युका ठीक अन्दाजा नहीं लगाया जा सका। (३) उत्तर भारतका अकाल सन् १७८४ । भयंकर दुर्भिक्ष था। गाँवके गाँव उजाड़ हो गये। बनारसराज्यमें लोग इतने मरे कि खेती बन्द हो गई। मृत्युका ठोक भन्दाज नहीं। (४) बम्बई और मदासका अकाल सन् १७५५ । » Famines in India. For Private And Personal Use Only
SR No.020121
Book TitleBharat me Durbhiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshdatta Sharma
PublisherGandhi Hindi Pustak Bhandar
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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