________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
preraman.aniraronmararwarnarrrrammamammmmmmmmmnawwwran.airn..
कुछ और भी। खानपान कह सुनाया । फैसले में सब तीर्थ बतलाये गये, भागवतकी कथा सुननेको बतलाई गई और लगभग पाँच छः गाँवोंको भोजन कराना बतलाया गया। कोई सातसौ या आटसौ रुपयोंके लगभग खर्च करनेका फैसला 'दया गया । गुलजारीने खर्च करनेके लिये अपने दिये हुए रुपये अपने भाईसे मांगे। भाईने कोरा जवाब दिया, जातिवालोंने उसे अलग कर दिया। उसके साथ गांववाले बड़ी घृणा करने लगे। भाई लोग कट्टर शत्रु हो गये और बोले कि तुमने हम लोगोंसे जो रुपया छिपा लिया है वही खर्च करो; यह रुपया तो हम नहीं देंगे । लाचार गुलजारीने फिजीमें अपने इष्ट-मित्रों को, अपनी कष्ट-कहानीकी चिट्ठी भेजी और लिखा कि कसाई के हायसे गाय छुड़ानेके समान मुझे बचा कर पुण्यके भागी बनो । वहाँसे लोगोंने ६००) रु० चन्दा करके भेजा तब गुलजारी अप्रैल सन् १९१४ में फिर फिजी पहुँचा। इसी भाँति कई लोग यहाँसे लौट कर फिज़ी पहुँचे और वहाँ जाकर ईसाई और मुसलमान हो गये । इस समुद्र-यात्राकी धार्मिक दफामें मुजरिम होकर बहुतेरे हमारे भाई अपनी मातृभूमिको अन्तिम नमस्कार करके चले गये हैं।"
बड़े बड़े धुरन्धर पंडितोंसे जो समुद्र-यात्राके घोर विरोधी हैं, हम प्रश्न करते हैं कि क्या आप इस प्रकारके अत्याचारोंको धर्मानुमोदित समझते हैं ? यदि नहीं तो फिर बतलाइए कि इन लोगोको पुनः जातिमें मिला लेनेका आपने क्या प्रबन्ध किया है। जो भाई घरके अत्याचारोंसे पीड़ित होकर और नीच आरकाटियों द्वारा बहकाये जाकर विदशोमें भेज दिये गये हैं उसमें उन बेचारोंका क्या दोष है ?
For Private And Personal Use Only