________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२०८
भारतमे दुर्भिक्ष । पर कोई हमें जातिमें तो मिलावेगा नहीं और व्यर्थ ही वहाँ जात्यपमान सहना पड़ेगा, इस लिये मृत्य पर्यंत उन्हें वहीं कष्ट उठाने पड़ते हैं। हमारे देश भाई टापुओंसे लौटे हुए अपने भाइयोंको समुद्र-याबाकी दफा लगा कर जातिच्युत करके उन्हें इतना कष्ट देते हैं कि वे पुनः दुखी होकर टापुओंको लौट जाते हैं और उनका धन जो कि उन्होंने परदेशमें मार-पीट सह कर, अनेक अपमान सह कर
और आधे पेट खा-खा कर कौड़ी कौड़ी मुष्किलसे जमा किया है,कुछ तो भाई बन्धु ले लेते हैं और कुछ टकार्थी पुरोहितजी प्रायश्चित्त करानेमें बेदर्द होकर खर्च करवा डालते हैं। अपने देश-बन्धुओंको मैं इसका एक उदाहरण देता हूँ। मेरे घरके पास फिजी टापूमें गुलजारी नामका एक कान्यकुब्ज ब्राह्मण रहता था । उसने बड़े परिश्रमसे आठ वर्षों में लगभग ३००) रु० संग्रह किये । इसे ब्राह्मण जान कर प्रायः सब लोग प्रति मास पूर्णिमाको सीवे दे दिया करते थे । यह कन्नौजका रहनेवाला था। इसके घरसे इसके भाई ने पत्र में यह लिख भेजा कि तुम चले आओ। यदि इस साल तुम अपने देश नहीं आओगे तो तुम्हें १०१ गऊ मारेकी हत्या होगो । गुलजारीने जब भाईकी लिखी ऐसी शपथ देखी तब ब्राह्मग-धर्म समझ कर वह देशको चला आया। चलते समय लोगोंने इसे कुछ और दक्षिणा दी। जब यह भारतवर्ष में पहुँचा तो दूसरे घरमें ठहराया गया। रुपया पैसा सब भाईको सैंप दिया । तीन चार दिन बाद पुरोहितजी बुलाये गये।ये महाशय कानूनकी पुस्तक साथ लेकर आये । गाँवके बड़े बूढे सब मिल कर बैठे। समुद्र-यात्रा पर विचार हुआ। गुलजारीने घरसे निकलनेसे लेकर फिजीमें पहुँचने तकका
For Private And Personal Use Only