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कुछ और भी ।
२०५.
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हिन्दू लोग अपनी कमाईका एक बड़ा भाग अपने घर भारतवर्षको भेज देते हैं । स्टाकटन नामक नगर के निकटके हिन्दुओंने सन् १९१४ ई० में ५५ हजार, ४ सौ, ६७ रुपये घरको भेज दिये ।" थोड़ी देर के लिये हम मान भी लेते हैं कि उक्त संख्या ठीक है । अब हमारा प्रश्न इन केली-फोर्नियावाले अमरीकनोंसे है कि" क्या अमेरिका-प्रवासी यूरोपियन लोग अपनी कमाईका एक बड़ा भारी हिस्सा अपने देशको नहीं भेजते ? " देखिए, डा० स्टीनरने जो प्रवास सम्बन्धी प्रश्नोंके अच्छे ज्ञाता हैं " अमेरिकन रिव्यू आफ रिव्यूज " नामक पत्र में लिखा था:
“ About Forty percent of our European pea - sant immigrants re-emigrate. They export perhaps 2700,000,000, Rupees each, normal year. During industrial depression or panics these become larger".
अर्थात् - अमरीका प्रवासी यूरोपियन किसानों में से चालीस फी सदी लगभग दो अरब, सत्तर करोड़ रुपये प्रत्येक साधारण वर्ष में घर भेजते हैं । जब उद्योग-धन्धों का काम ढीला पड़ जाता है तो यह रकम बढ़ जाती है ।"
हमें आश्चर्य है कि ५५ हजार रुपये भारतवासियों ने यदि अपने देशको भेज दिये तो उनके पेटमें क्यों चूहे कूदने लगे ? और यूरोपियन लोग जो प्रायः तीन अरब रुपया अमेरिकासे प्रति वर्ष अपने देशों को भेज देते हैं उसका कुछ जिक्र ही नहीं ! भारतवासियों के इस अपमानकी कुछ सीमा है । हमें उचित तो यह है कि हम अमे-रिकाके बने हुए मालको स्पर्श तक न करें ।
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