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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुछ और भी। योंको जो अपने देशमें हमारे भाइयोंका अपमान कर प्रसन्न होते हैं, कदापि भारतवर्ष में नहीं आने देते और जो हैं उन्हें कभीके यहाँसे एकदम निकाल दिये होते, परन्तु हम तो पराधीनताकी दृढ़ जंजीरमें बँधे हैं। यह एक प्रसिद्ध बात है कि " जिसका सम्मान घरमें नहीं वह बाहर भी सम्मानित होनेको आशा छोड़ दे।" हम एक ऐसे देशका कुछ जिक्र करते हैं जहाँ भारतवासियोंको अन्य देशों और द्वीपोंकी अपेक्षा अधिक आराम और सुख था, किंतु उसने जब देखा कि भारतवासियोंका ब्रिटिश उपनिवेशों में हो अपमान होता है तो हम भी उन्हें अपने देशसे निकाल बाहर करनेका उद्योग क्यों न करें । वह देश है ' अमेरिका । अब वह भारतवासी मनुष्योंको अपने यहीं नहीं आने देना चाहता है। वह भी ऊपर लिखे हुए आक्षेपोंकी भाँति कई आक्षेप करता है। इस समय लगभग बीस लाख भारतवासी विदेशों में हैं और अमेरिकामें सन् १९१३ की मनुष्य-गणनाके अनुसार ४७९४ भारतवासी थे। इनमें लगभग ३०० विद्यार्थी हैं । किस किस सालमें कितने भारतवासी अमेरिकामें गये थे यह बात निम्न लिखित अंकोंसे प्रकट होती है१९०० सन्में, ९ भारतवासी गये। १९०२ १९०३ १९०४ , " , २५८ १४५ १९०५ , For Private And Personal Use Only
SR No.020121
Book TitleBharat me Durbhiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshdatta Sharma
PublisherGandhi Hindi Pustak Bhandar
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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