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भारतमें दुर्भिक्ष । पर निम्न लिखित दोष लगाया करते हैं--(१) भारतवासी मूर्ख होते हैं,(२) हमसे मिल कर रहना पसन्द नहीं करते,( ३ ) जातिपातिके बन्धनोंसे जकड़े होते हैं, (४) मैले होते हैं अत एव हमारे देशोंमें बीमारी फैलती है, (५) दुराचारी होते हैं, (६) साफे बाँधते हैं,(७) हमार देशका धन बचा बचा कर भारतको भेजते रहते हैं,( ८ ) ये लोग ईसाई नहीं हैं,(९) इन्हें ब्रिटिश उपनिवेशोंके प्रवेशका अधिकार पूर्णतया प्राप्त नहीं, (१० ) ये लोग सभ्य जातिके नहीं.( ११ ) ये साधारण भोजन करके बहुत बचा लेते हैं,(१२) हमारी बराबरी करते हैं, (१३) कम मजदूरी पर काम करते हैं— इत्यादि । ये सब आक्षेप ऐसे हैं जिनमें कुछ सार नहीं, मूर्खता पूर्ण एवं दिल्लगी करने योग्य हैं। हम पूछ सकते हैं कि यदि विदेशोंमें हमें घुसने का अधिकार नहीं तो भारतमें विदेशियोंको घुसनेका क्या अधिकार है ? किंतु हमारी ब्रिटिश गवर्नमेण्टने हमारे इन अपमानोंको कभी नहीं सोचा । सच बात तो यह है कि हमारी सरकारने कभी हमारा पक्ष नहीं लिया है; और न कभी हमारे विपक्षियोंके विरुद्ध एक उँगली ही उठाई है। यही एक मुख्य कारण है कि हमारा विदेशोंमें खुलमखुल्ला अपमान हो रहा है और वहाके निवासी हजारों रुपये मासिक वेतन पर भारतमें आनन्द कर रहे हैं और हम च भी नहीं कर सकते । नहीं तो क्या मजाल थी कि हमें अपमानित करनेवाले भारतकी सीमामें फटकने पाते । हमारी इस प्रकारकी बे-इज्जतीका कारण हमारी ब्रिटिश गवर्नमेण्ट है, जो हमारे दुःखोंको देख कर दुखी नहीं होती! या दसरा कारण हमारी परतंत्रता है। यदि हम अपने देशके शासक होते तो आज हम उन विदेशि
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