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कुछ और भी। रोगी कर दिया । प्लेग, कालरा, ज्वर आदि रोगोंको भारतमें लानेवाला एक यह तैल भी है। इसका धुआँ तन्दुरुस्तीको बरबाद करनेमें एक ही सिद्ध हुआ है । जो लोग मूल्यवान लालटेनोंमें इसे जला कर यह समझते हैं कि हम इसके धुएँसे बचे हुए हैं, वे वास्तव में भूले हुए हैं। वे प्रत्यक्ष रूपसे इसका धुआँ नहीं देखते, किंतु उससे मकानकी सारी हवा दूषित रहती है । प्रायः प्रति शत ७५ भारतवासी मिट्टीकी या टीनको चिमनियोंमें इसे जलाते हैं, जिसमेंसे एक प्रकारकी धएँकी चोटीसी लपट जलते समय उठा ही करती है-भला, क्या कभी आपने इसके द्वारा भविष्यमें उत्पन्न होनेवाली हानिको भी विचारा है ? उसका दूषित एवं विष-तुल्य धुआँ आपके श्वास द्वारा शरीरमें प्रवेश कर अनेक रोगोंको उत्पन्न करता रहता है, प्रत्येक इन्द्रियको निर्बल करता है। तभी तो भारतवासी अब रोगी और कमजोर होते चले जाते हैं । आँखोंके लिये मिट्टीका तैल एक दम विष-तुल्य पदार्थ है, जिसने भारत के हजारों लाखों नवयुव. कोंकी दृष्टि शक्ति कम कर डाली, जिसके कारण माताके उदरसे बाहर आते ही ऐनककी आवश्यकता पड़ती है ! आपने देखा होगा कि चिमनी जला कर सोनेवाले मनुष्योंका मुख प्रातःकाल उठने पर काला होता है, नासिकाके छिद्र बिलकुल Black hole ( ब्लैक होल) या रेलके एंजिन ठहरनेके मकानके द्वारके जैसे होते हैं। मुखसे थूकने पर कफमें कज्जल मिश्रित होता है । अर्थात् हम अपने हाथों अपनी बरबादी कर रहे हैं, उक्त मिट्टीके तैल को खरीद कर अपना करोड़ों रुपया ही विदेशोंको नहीं दे रहे हैं बल्कि रोगी भी हो रहे हैं । इन दिनों तो मिट्टीके तैल का भाव पूर्वापेक्षा तिगुना, चौगुना
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